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विश्व अस्थमा दिवस: दमा से हांफता देश… विश्व के मुकाबले चार गुना मृत्यु दर, इन कारणों से खराब हो रहे हालात

विश्व अस्थमा दिवस: दमा से हांफता देश… विश्व के मुकाबले चार गुना मृत्यु दर, इन कारणों से खराब हो रहे हालात

विश्व के मुकाबले भारत में दमा से होने वाली मौतों की संख्या चार गुना है। आनुवांशिकता और धूम्रपान के साथ ही पर्यावरण का खराब स्तर भी लोगों की सेहत पर असर डाल रहा है। आगे पढ़ें केजीएमयू के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष द्वारा साझा की गई अहम जानकारियां…

विश्व अस्थमा दिवस हर साल मई माह के पहले मंगलवार को मनाया जाता है। इसका उद्देश्य दुनिया भर में अस्थमा की बीमारी और देखभाल के बारे में जागरुकता फैलाना है। इस वर्ष विश्व अस्थमा दिवस की थीम ‘श्वसन उपचार को सभी के लिए सुलभ बनाना’ है।

भारत जैसे देश में बाकी विश्व के मुकाबले इस दिवस का महत्व और भी ज्यादा है। ग्लोबल बर्डन ऑफ अस्थमा रिपोर्ट के अनुसार विश्व में लगभग 34 करोड़ और भारत में करीब चार करोड़ लोग दमा से पीड़ित हैं। दमा से होने वाली मोत के आंकड़े इससे भी भयावह हैं। अस्थमा से होने वाली माैतों का वैश्विक आंकड़ा 13 फीसदी सालाना है, वहीं भारत में यह प्रतिशत 46 फीसदी है।

विश्व अस्थमा दिवस का आयोजन ग्लोबल इनिशिएटिव फॉर अस्थमा (जीआईएनए) द्वारा प्रतिवर्ष किया जाता है। सन् 1998 में, बार्सिलोना, स्पेन में पहली विश्व अस्थमा बैठक में 35 से अधिक देशों द्वारा पहला विश्व अस्थमा दिवस मनाया गया था। तब से लेकर यह दिवस बराबर मनाया जा रहा है। अस्थमा (दमा) एक आनुवांशिक रोग है जिसमें रोगी की सांस की नलियां अतिसंवेदनशील होती हैं। कुछ कारकों के प्रभाव से उनमें सूजन आ जाती है। इससे रोगी को सांस लेने में कठिनाई होती है।

हिस्टामीन स्रावित होने से श्वास नलिकाएं संकुचित हो जाती हैं
धूल (घर या बाहर की) या पेपर की डस्ट, रसोई का धुंआ, नमी, सीलन, मौसम परिवर्तन, सर्दी-जुकाम, धूम्रपान, फास्टफूड, मानसिक चिंता, व्यायाम, पालतू जानवर एवं पेड़ पौधों एवं फूलों के परागकण तथा वायरस एवं बैक्टीरिया के संक्रमण आदि प्रमुख होते हैं। जब अस्थमा के कारक मरीज के संपर्क में आते है तो शरीर में मौजूद विभिन्न रसायनिक पदार्थ (जैसे हिस्टामीन) स्रावित होते हैं। इनसे श्वास नलिकाएं संकुचित हो जाती हैं। श्वास नलिकाओं की भीतरी दीवार में लाली और सूजन आ जाती है और उसमें बलगम बनने लगता है। इन सभी से दमा के लक्षण पैदा होते है तथा बार-बार कारकों के संपर्क में आने से श्वास की नलिकाओं में स्थायी रूप से बदलाव हो जाते हैं।

दो तिहाई में बचपन से शुरू होती है बीमारी

दो तिहाई से अधिक लोगों में दमा बचपन से ही शुरू हो जाता है। इसमें बच्चों को खांसी होना, सांस फूलना, सीने में भारीपन, छींक आना व नाक बहना तथा बच्चे का सही विकास न हो पाना जैसे लक्षण होते हैं। शेष एक तिहाई लोगों में दमा के लक्षण युवा अवस्था में प्रारंभ होते हैं। इस तरह दमा बच्चों या युवावस्था में ही प्रारंभ होने वाला रोग है।

इन्हेलर है सर्वश्रेष्ठ चिकित्सा

दमा के इलाज में इन्हेलर चिकित्सा सर्वश्रेष्ठ है क्योकि इसमें दवा की मात्रा का कम इस्तेमाल होता है। इस तरह से दवाई दुष्प्रभाव कम से कम होता है। इसका असर सीधा सांस नलियों और फेफड़े पर होता है। इसलिए अस्थमा में इन्हेलर चिकित्सा की सलाह दी जाती है।

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