यूपी : अब स्क्रू नहीं सीमेंट से जुड़ जाएंगे टूटे कूल्हे, इस तरह से होगी सर्जरी; प्रयोग को मिली मान्यता

यूपी: अब स्क्रू नहीं सीमेंट से जुड़ जाएंगे टूटे कूल्हे, इस तरह से होगी सर्जरी; प्रयोग को मिली मान्यता
बुजुर्गों के कूल्हे की टूटी हड्डी अब स्क्रू से नहीं बल्कि सीमेंट से जोड़ी जाएगी। संजय गांधी पीजीआई में सीमेंटेड मॉड्यूलर बाइपोलर हेमीऑर्थोप्लास्टी तकनीक का इस्तेमाल करके 54 बुजुर्गों का सफल उपचार किया गया है।
बुजुर्गों में कूल्हे की हड्डी टूटने का उपचार अब ज्यादा प्रभावी तरीके से संभव है। संजय गांधी पीजीआई में सीमेंटेड मॉड्यूलर बाइपोलर हेमीऑर्थोप्लास्टी तकनीक का इस्तेमाल करके 54 बुजुर्गों का सफल उपचार किया गया है। इसमें बोन सीमेंट का इस्तेमाल करके कूल्हे की सर्जरी को अंजाम दिया गया। इसे जर्नल ऑफ ऑर्थोस्कोपी एंड जायंट सर्जरी ने मान्यता दी है।
साठ साल से अधिक आयु वाले बुजुर्गों में कूल्हे की हड्डी टूटना आम समस्या है। करीब 45 फीसदी बुजुर्गों में होने वाला फ्रैक्चर कूल्हे का ही होता है। अभी सर्जरी में स्क्रू के माध्यम से कूल्हे की टूटी हड्डी जोड़ी जाती है। बुढ़ापे में हड्डी कमजोर होने की वजह से ऐसी सर्जरी की सफलता दर कम है, क्योंकि स्क्रू कमजोर हड्डी पर अच्छे से टिक नहीं पाता।
युवाओं में ऐसी सर्जरी के अच्छे परिणाम होते हैं, लेकिन बुजुर्गों के मामले में परिणाम अच्छे नहीं होते। ऐसे में पीजीआई में इस नई तकनीक का इस्तेमाल किया गया। अब तक 54 बुजुर्गों की इस तकनीक से सर्जरी की गई है। इनकी औसत आयु 71 साल थी। सभी की कूल्हे की टूटी हड्डी सीमेंटेड मॉड्यूलर बाइपोलर हेमीऑर्थोप्लास्टी तकनीक से सर्जरी करके जोड़ी गई। इस तकनीक पर काम करने वाली टीम में डाॅ. हेमंत देवनायकनहल्ली रामैया, डाॅ. अविनाश पार्थसारथी, डाॅ. नचिकेतन केम्पैया डोरे और डाॅ. विशांत कृष्ण राव शामिल हैं।
31 फीसदी मामलों में उत्कृष्ट परिणामसर्जरी के एक साल बाद तक सभी मरीजों का फाॅलोअप किया गया। पाया गया कि नई तकनीक से 31 फीसदी में परिणाम उत्कृष्ट श्रेणी में थे। 51 फीसदी में परिणाम अच्छे और बाकी में सामान्य थे। सर्जरी के बाद बुजुर्ग पहले की तरह वजन उठाने लगे और दोबारा ऑपरेशन का जोखिम भी कम हुआ।
जानिए क्या है सीमेंटेड मॉड्यूलर बाइपोलर हेमीऑर्थोप्लास्टीइस तकनीक में कूल्हे के जोड़ वाले क्षतिग्रस्त हिस्से को कृत्रिम अंग से बदला जाता है। कृत्रिम अंग को हड्डी में बोन सीमेंट का उपयोग करके भरा जाता है। यह कृत्रिम अंग अलग-अलग हिस्सों को मिलाकर बनाया जाता है। हर रोगी के लिए उसकी जरूरत और माप के हिसाब से कृत्रिम अंग को आकार दिया जाता है। कृत्रिम अंग में बेयरिंग भी होती है, इसलिए उनको चलाना आसान होता है।