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कहानी : “मानवता आज भी जिंदा है”

कहानी,

“मानवता आज भी जिंदा है”

कहानी की शुरुआत होती है एक निजी कोचिंग लाइब्रेरी सेंटर से आजकल तमाम शहरों में लाइब्रेरी केंद्र खुले हुए हैं जिसमें छात्र-छात्राएं अपने पठन-पाठन का कार्य जाकर करते हैं अपनी परीक्षा की तैयारी करते हैं,

अब हुआ यूं की लखनऊ में एक निजी लाइब्रेरी सेंटर के संचालक है जिनकी दो से तीन ब्रांच लखनऊ जैसे शहर में संचालित होती है उनकी संस्था से अच्छे से अच्छे शिक्षित टॉपर निकालकर नौकरी करते हुए देश को अपनी सेवा दे रहे हैं

अब कहानी की शुरुआत होती है यहां से रोज की भांति लाइब्रेरी संचालक अपनी संस्था पर निकलते हैं पर किसी कारणवश वह तीन से चार दिनों से अपनी संस्था पर नहीं जा पाए थे आज सुबह-सुबह चार दिनों बाद जब वह अपने लाइब्रेरी सेंटर पर पहुंचे तो अब इसको संयोग कह लीजिए की उनकी नजर एक लड़के पर पड़ी उसे देखकर उन्होंने उस लड़के को अपने चेंबर में बुलाया और पूछा कि कितने दिनों से यहां पढ़ रहे हो लड़के ने कहा सर 2 महीने से संचालक महोदय ने कहा 2 महीने से पढ़ रहे हो तो फीस क्यों नहीं दिया और रजिस्ट्रेशन क्यों नहीं कराया लड़के ने जवाब दिया सर पैसा नहीं है अब मामला सुबह-सुबह का था और मानव स्वभाव संचालक महोदय को अंदर ही अंदर गुस्सा आने लगा उन्होंने लड़के से कहा पैसा नहीं है इसका क्या मतलब लड़के ने फिर कहा सर पैसा अभी नहीं है दे दूंगा अब संचालक महोदय को और भी गुस्सा आने लगी उन्होंने लड़के से कहा कि 2 महीने से पढ़ रहे हो पैसा कहीं से मंगा कर दो नहीं तो मेरी लाइब्रेरी से निकल जाओ अब लड़के की स्थिति वही थी मरता क्या न करता कई जगह फोन घुमाया कई लोगों से बात की किसी ने उसके मोबाइल पर₹500 भेजा लड़के ने ₹500 संचालक महोदय को देते हुए कहा कि बाकी जो है वह भी दे दूंगा इतना कह कर वह रोवासें मन से संचालक महोदय के सामने टेबल पर रखें पानी की बोतल को देखकर कहा सर पानी पी सकता हूं संचालक महोदय ने लड़के की तरफ गौर से देखते हुए कहा कि पी लो अब इस भीषण गर्मी में काफी ठंडा पानी जो बोतल में था लड़के ने एक सांस में उसे खाली कर दी बोतल को टेबल पर रखते हुए लड़के ने संचालक महोदय से बड़ी सहजता से कहा सर दो-तीन दिन से कुछ खाया नहीं हूं अब संचालक महोदय को लगा कि बात कुछ और है लड़के की तरफ देखते हुए उन्होंने कहा आओ मेरे साथ संचालक महोदय बिना कुछ बोले लड़के को लेकर अपने चार पहिया वाहन से एक होटल में पहुंचे लड़के को यह समझ नहीं आ रहा था कि आखिर संचालक महोदय क्या करना चाह रहे हैं होटल में पहुंचते ही संचालक महोदय द्वारा खाने का आर्डर दिया गया जब तक खाना नहीं आया उस बीच लड़के और संचालक की चुप्पी मानो अपने अंदर हजारों सवालों को ढूंढ रही हो इसी बीच ऑर्डर दिया हुआ खाना टेबल पर पहुंचा संचालक महोदय ने लड़के से कहा पहले तुम इत्मीनान से खाओ इसके बाद बात होगी लड़के ने खाने की तरफ देखा और बिना कुछ सोचे मानो यह भूख दो-तीन दिन की नहीं बल्कि महिनों की हो संचालक महोदय लड़के को खाते देखते हुए उनके अंतर्मन में कई सवाल पनप रहे थे खाना समाप्त होने के बाद लड़के ने हाथ जोड़ते हुए संचालक महोदय का धन्यवाद दिया और रोने लगा अब संचालक महोदय के मन में जो जिज्ञासा थी कि आखिर बात क्या है उन्होंने लड़के से पूछा लड़के ने अपनी सारी परेशानी और परिवार की माली हालत की एक-एक बात संचालक महोदय से कहते हुए बताईं और कहा कि पढ़ने और कुछ बनने की इच्छा से मैं यहां आया हूं पर मेरी माली हालत ठीक नहीं है कि मैं फीस दे सकूं लड़के ने रोते हुए कहा कि सर मैं कुछ बनना चाहता हूं कुछ करना चाहता हूं ताकि मैं अपने परिवार का सहारा बन पाऊं लड़के की इतनी बात सुनकर संचालक महोदय को मानों सारे उत्तर मिल चुके थे संचालक महोदय ने लड़के के इस आपबीती और इच्छा शक्ति को देखकर कहा कि आज से तुम मेरी संस्था में जब तक पढ़ना चाहों पढ़ो तुमसे एक भी रुपया शुल्क नहीं लिया जाएगा और आज के बाद इस लाइब्रेरी की देखरेख तुम्हारी जिम्मेदारी है इस एवज में तुम्हें हर महीने मेरी तरफ से उचित वेतन भी दिया जाएगा संचालक महोदय ने लड़के से जो ₹500 शुल्क के रूप में लिया गया था उसे लौटाना चाहा तो लड़के ने अपनी खुद्दारी दिखाते हुए पैसा लेने से मना कर दिया अब संचालक महोदय लड़के की इस खुद्दारी को देखकर सोचने पर विवश हो गए की जिसको खाने के लाले हैं और जो पढ़ना चाहता हों वह कितना खुद्दार इंसान है संचालक महोदय ने बड़े ही अपनेपन के साथ लड़के से कहा कि बेटा आज पैसा तुम रख लो और जिस दिन तुम पढ़ कर कामयाब हो जाओगे उस दिन मेरे पास आना मैं तुमको मना नहीं करूंगा उस समय तुम जो भी मुझे दोगे वह मैं खुशी के साथ रख लूंगा।

आज समाज में इस वाकए से यही पता चलता है कि मानवता आज भी जिंदा है,भगवान रूपी संचालक में।

लेखक- वेद प्रकाश पाण्डेय रिपोर्टर ,इंडिया नाऊ 24

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