लखनऊ : पिता दिवस पर मां भी बने, पिता भी रहे… और बन गए पूरी दुनिया उनके लिए

पिता दिवस पर मां भी बने, पिता भी रहे… और बन गए पूरी दुनिया उनके लिए
लखनऊ। वो कभी खुलकर अपने जज्बात नहीं कहता… न थकान जताता है, न ही दर्द दिखाता है… मगर जब भी जिंदगी मुश्किल लगती है, तो सबसे पहले उसी का चेहरा याद आता है… पिता। मां की ममता जहां लोरी बनकर सुलाती है, वहीं पिता की अंगुलियां थामकर ही हम दुनिया की भीड़ में चलना सीखते हैं। पिता… एक साया, जो खुद धूप में तपता है, ताकि हमारे हिस्से सिर्फ छांव आए। एक मजबूत पर्वत की तरह, जो हर तूफान के सामने खड़ा हो जाता है परिवार की रक्षा के लिए… लेकिन कभी-कभी किस्मत कुछ और ही लिख देती है… और तब, ये पिता मां भी बन जाता है। अपने आंचल में ममता भी ओढ़ लेता है। सिर्फ पालता नहीं… हर लम्हा जीता है अपने बच्चों के लिए… दोहरी जिम्मेदारी के साथ। आज फादर्स डे पर हम मिलवाते हैं आपको कुछ ऐसे ही पिता से, जिन्होंने अपने बच्चों के लिए खुद को भी पीछे छोड़ दिया। मां भी बने, पिता भी रहे… और बन गए पूरी दुनिया उनके लिए। पेश है खास रिपोर्ट :23 दिन के भीतर पत्नी व मां को खोया, संभाली बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारीहाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में अधिवक्ता संजय श्रीवास्तव आजमगढ़ में 1994 से वकालत कर रहे थे। फिर 2013 में एक दिन पत्नी ज्योति को ब्रेन स्ट्रोक पड़ा। उन्हें लेकर पीजीआई लखनऊ आए। करीब एक साल इलाज चला और 2014 में देहांत हो गया। उस समय उनके दोनों बेटे दिव्यम और नमन की उम्र क्रमश: 15 व 10 वर्ष थी। 23 दिन बाद ही संजय की मां का भी निधन हो गया। घर में बुजुर्ग पिता के साथ ही दो छोटे बच्चों की जिम्मेदारी संजय के कंधों पर आ गई। घर में कोई भी महिला सदस्य नहीं थी। संजय ने बताया कि परिजनों ने दूसरी शादी का काफी दबाव डाला, पर उन्होंने मना कर दिया। अकेले ही दोनों बच्चों की परवरिश का जिम्मा उठाया।
जिम्मेदारियों के बीच खुद के लिए समय बहुत मुश्किल से बचता था। 7 जून को उन्होंने बड़े बेटे की शादी भी कर दी है। बड़ा बेटा एनएचएआई में नौकरी कर रहा है। छोटा बेटा प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा है। दिव्यम व नमन का कहना है कि हमारी खातिर पापा ने जो त्याग किया है, उसे शब्दों में बयां करना मुश्किल है।
नौकरी के साथ मां का फर्ज निभाना किसी चुनौती से कम नहीं थाआशियाना की एलडीए कॉलोनी निवासी रामेश्वर ने बताया कि साल 2007 में लंबी बीमारी की वजह से पत्नी का देहांत हो गया। नौकरी के साथ बेटा व बेटियों के लिए मां का फर्ज निभाना चुनौती से कम न था। समाज ने दूसरी शादी का दबाव बनाया, पर बच्चों के लिए यह त्याग मंजूर था। सुबह घर का काम करने के बाद नौकरी पर जाते थे। लौटते थे तो पत्नी की कमी खलती थी। हालांकि, इन चुनौतियों का सामना करते हुए, बेटा सुमित कुमार और बेटियों नीलम व साधना की पढ़ाई और देखभाल में कोई कसर नहीं छोड़ी। खुशी है कि आज बच्चे अपने पैरों पर खड़े हैं।
बच्चों की खुशी से बढ़कर कुछ नहींकाकोरी के सकरा गांव निवासी 42 वर्षीय रमेश कुमार ने बताया कि बीमारी के चलते सात साल पहले पत्नी मीना चल बसीं। तब बेटा विजय महज सालभर का था। रमेश की शादी 17 साल पहले हुई थी। बड़ी बेटी पूजा आठ साल व छोटी बेटी वंदना चार साल की थी। साधारण परिवार व कामगार से ताल्लुक रखने वाले रमेश ने बताया कि तीनों बच्चों को पिता के साथ मां का दुलार भी दिया। बड़ी बेटी अब 15 साल की है, जिसने सरकारी स्कूल से कक्षा आठ तक पढ़ाई की। आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण पूजा की पढ़ाई बंद हो गई। पर, परवरिश में कोई कमी नहीं है।
पिता ने नौकरी के साथ माता का भी निभाया फर्जराज्य लोक सेवा अधिकरण में प्रशासनिक अधिकारी के पद पर तैनात गोमती नगर के विपुलखंड निवासी राजेश कुमार त्रिपाठी पिछले डेढ़ दशक से अपनी दो बेटी व एक बेटे के साथ माता-पिता दोनों का फर्ज निभा रहे हैं। वर्ष 2010 में पत्नी रीता त्रिपाठी को जब पैरालिसिस अटैक पड़ा तो उनका दायां हाथ और पैर काम करना बंद कर दिया। राजेश ने बताया कि बड़ी बेटी राजश्री स्नातक प्रथम वर्ष, छोटी बेटी विजश्री इंटर में थी। बेटा शिवोम शंकर आठवीं में था। बीमार पत्नी की देखभाल भी उन्हें चौथे बच्चे के रूप में ही करनी पड़ती थी। इस दोहरी जिम्मेदारी को निभाते हुए उन्होंने बड़ी बेटी को एलएलएम कराया। 2019 में उसकी शादी की। छोटी बेटी बीकॉम के बाद आईसीआईसीआई बैंक हरदोई में कैशियर बनी। 2022 में उसकी भी शादी की। बेटा सीए बनकर अपनी फर्म चला रहा है। लंबा इलाज कराने के बाद भी वह पत्नी को बचा नहीं सके। चार दिसंबर 2023 को पत्नी का निधन हो गया। नौकरी के साथ यह बड़ी जिम्मेदारी निभाने में कई बार वह भीतर ही भीतर टूट जाते थे, लेकिन बच्चों को इसका आभास न हो सके इसके लिए उसकी शिकन चेहरे तक नहीं आने देते थे। राजश्री ने बताया कि हम तीनों भाई-बहन को पिता से मां व पिता दोनों का प्यार मिला। मां अब इस दुनिया में नहीं है, लेकिन पिता उनकी कमी नहीं खलने देते हैं।मुश्किल हो जाता है पिता के साथ मां बननामां, मां होती है और पिता सिर्फ पिता। बच्चे को इन दोनों की जरूरत रहती है। यह कहना है कि आर्किटेक्चर काॅलेज के लाइब्रेरियन एलके मिश्रा का। उनकी पत्नी का देहांत छह साल पहले हो गया था। उस समय उनके छोटे बेटे ने हाईस्कूल की परीक्षा पास की थी। ऐसे में उन्होंने मां और पिता दोनों की जिम्मेदारी एक साथ संभाली। एलके मिश्रा के मुताबिक, व्यक्तिगत जीवन में मां की भूमिका ज्यादा अहम होती है और सामाजिक जीवन में पिता की। पत्नी के देहांत के बाद घर की छोटी-छोटी बातें भी जानकारी में आने लगीं, जिनके बारे में कभी चिंता नहीं करनी पड़ती थी। घर-परिवार के लोगों ने सहयोग किया, लेकिन असली चुनाैती से खुद ही जूझना पड़ा। दैनिक दिनचर्या बदल गई। दोनों बेटों ने भी अपनी जिम्मेदारी समझी। आज बड़ा बेटा एमटेक और छोटा बीएससी ऑनर्स कर रहा है। दोनों लखनऊ से दूर हाॅस्टल में रह रहे हैं।