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लखनऊ गंभीर वित्तीय अनियमितता के आरोपी अभियंता को प्रमोशन देने की तैयारी, भ्रष्टाचार के लगे थे गंभीर आरोप

लखनऊ गंभीर वित्तीय अनियमितता के आरोपी अभियंता को प्रमोशन देने की तैयारी, भ्रष्टाचार के लगे थे गंभीर आरोप

वित्तीय अनियमितता के मामले में जांच में गड़बड़ी की पुष्टि होने के बाद शासन ने एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिए थे। इसके कारण सरकार को 8 करोड़ के स्थान पर ठेकेदार को करीब 13 करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान करना पड़ा था।

सिंचाई विभाग में भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों से घिरे ईएनसी ऑफिस लखनऊ में तैनात मुख्य अभियंता (स्तर-एक) मध्य एके सिंह को प्रमोशन देने की तैयारी हो रही है। इन पर बिजनौर में बतौर अधीक्षण अभियंता तैनाती के दौरान वित्तीय अनियमितता के आरोप हैं। इससे सरकार को 8 करोड़ के स्थान पर ठेकेदार को करीब 13 करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान करना पड़ा था।

दरअसल, बिजनौर में डिवाटरिंग (साइफन बनाने के दौरान पानी निकालना) के काम में बड़े पैमाने पर अनियमितता की शिकायत पर शासन ने तीन सदस्यीय समिति से जांच कराई थी। जांच में बड़े पैमाने पर गड़बड़ियां सामने आई थीं। इसमें दोषी पाए जाने पर शासन ने तत्कालीन अधीक्षण अभियंता एके सिंह समेत सभी अभियंताओं पर एफआईआर दर्ज कराने का आदेश दिया था, लेकिन डेढ़ साल बाद भी न तो एफआईआर दर्ज कराई गई और न ही जांच रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई की गई।

अलवत्ता एके सिंह अधीक्षण अभियंता से मुख्य अभियंता स्तर-1 के पद पर पहुंच चुके हैं। अब उन्हें प्रमुख अभियंता के पद पर प्रोन्नति देने का खेल शुरू है। इससे संबंधित प्रस्ताव मुख्यमंत्री कार्यालय को भेजा गया है। है। हालांकि, सीएम ऑफिस ने इसपर अभी कोई अंतिम फैसला नहीं लिया है।सूत्रों का कहना है कि पदोन्नति के प्रस्ताव पर सीएम ऑफिस ने पिछले दिनों आपत्ति लगा दी थी। इसमें शासन से एफआईआर दर्ज न कराने और जांच रिपोर्ट में उठाए गए सवालों के संबंध में जवाब मांगा था। सीएम ऑफिस की सख्ती के बाद फिर से फाइल में गोलमो जवाब भेज दिया गया है। वहीं, इस मामले में कोई भी सक्षम अधिकारी मुंह खोलने को तैयार नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट तक गया था मामला

मध्य गंगा नहर परियोजना के दूसरे चरण में बिजनौर में नहर पर साइफन बनाने के लिए डिवाटरिंग के काम की मूल लागत 80 लाख रुपये थी। इसके लिए निविदा में 27 रुपये प्रति किलो वाट प्रति घंटे की दर तय थी। इसे बढ़ाकर 40 रुपये किलो वाट प्रति घंटे कर दिया गया। इससे काम की लागत 8 करोड़ तक पहुंच गई। लेकिन, संबंधित ठेकेदार से विवाद होने से भुगतान अटक गया। लिहाजा ठेकेदार आर्बिटेशन फिर हाईकोर्ट गया, जहां से मुकदमा जीत गया। विभाग उसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गया, वहां से भी ठेकेदार के पक्ष में फैसला आया। इसमें ठेकेदार को 13.60 करोड़ रुपये का भुगतान करने का आदेश हुआ। ठेकेदार ने इस मामले में मुख्यमंत्री से भी शिकायत दर्ज कराई थी।

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