आर्टिकल
औरों के लिए लड़ता हूं, पर अपने लिए कहां बोल पाता हूं! हां मैं पत्रकार कहलाता हूं
औरो के लिए मै लड़ता पर अपने लिए कुछ नहीं कहता हूं। हाँ मैं एक पत्रकार हूँ

- ‘न जाने कितने ऐसे पत्रकारों की हत्याएं हो चुकी हैं। कुछ हत्याएं सुर्खियां बन गई, और कुछ की रात के अंधेरे में कीमत चुका दी गई। यह पेशा काफी चुनौती भरा है, जिसे कुछ लोग ही करना चाहते हैं। आइए, हम आपको कुछ ऐसी और घटनाओं के बारे में बताते हैं, जहां रिपोर्टिंग करना, बिल्कुल काल के गाल में समाने जैसा था।
- औरों के लिए लड़ता हूं, पर अपने लिए कहां बोल पाता हूं! हां मैं पत्रकार कहलाता हूं ‘खबरों की खबर वह रखते हैं अपनी खबर हमेशा ढकते हैं दुनिया भर के दर्द को अपनी खबर बनाने वाले अपने वास्ते बेदर्द होते हैं’ (विनायक विजेता) पत्रकार होने का मतलब क्या होता है? ये पत्रकार दिखते कैसे हैं? क्या पत्रकार चापलूस होते हैं? न जाने कितने ऐसे सवाल, जो हम सभी के मन में समाचार पढ़ते या देखते हुए आते हैं। आने भी चाहिए, क्योंकि ये पेशा है ही ऐसा कि सवाल उठना लाजिमी है। देश-दुनिया की सभी घटनाओं पर पत्रकारों की नज़र रहती है। खबरों के संकलन से लेकर दर्शकों तक पहुंचाने तक के क्रम में एक पत्रकार को कितनी मेहनत करनी पड़ती है, उसे शायद आप नहीं महसूस कर सकेंगे, क्योंकि आप पत्रकार नहीं हैं। मॉर्निंग में बिना ब्रेक और ब्रेकफास्ट के साथ, हाथ में बूम माईक लेकर और नोट-कॉपी के साथ कलम लिए, जब एक पत्रकार घर से निकलता है तो देखने वालों को सुपरस्टार जैसा लगता है। लेकिन।।। थोड़ा सा रुक कर आप उस पत्रकार से पूछिएगा कैसे हैं आप? वो पत्रकार मुस्कुराते हुए आपको जवाब देगा कि बढ़िया है। जबकि सच्चाई ये है कि उसके दिल में कई चीज़ें एक साथ चल रही होती है। बॉस के साथ मॉर्निंग मीटिंग, डेली प्लान, स्टोरी आइडिया और शाम को रिपोर्ट सबमिट करना। इन सब के बीच में उसकी ज़िंदगी और उसके परिवार का कहीं जिक्र नहीं है। हालांकि परिवार वाले शेखी बघारते रहते हैं कि बेटा शहर में बड़ा पत्रकार है। हम आपको यहां ज्ञान नहीं देना नहीं चाहते हैं, बस पत्रकारों की ज़िंदगी पर थोड़ा प्रकाश डालना चाहते हैं। एक खबर के लिए पत्रकार को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। कभी ज़ख्म खा जाते हैं, तो कहीं चोटिल हो जाते हैं। दिन में अपनी ड्यूटी निभाने के बाद रात के 12 बजे तक ऑफिस में डटे रहते हैं। वॉर, दंगा-फसाद और छिट-पुट हिंसा में जाना इनकी आदत सी हो गई है। आइए आज हम आपको पत्रकारों की ज़िंदगी से रू-ब-रू करवाते हैं। ‘कारगिल’ की पहली महिला रिपोर्टर पत्रकारिता जगत में बरखा दत्त एक ऐसा नाम है, जिन्होंने कई अवार्ड्स तो जीते ही हैं, साथ ही ऐसे कारनामे भी किए हैं, जो उनसे पहले किसी भी महिला पत्रकार ने नहीं किए। कारगिल युद्ध की कवरेज करने वाली बरखा पहली महिला रिपोर्टर हैं, जिसके लिए उन्होंने अपनी जान जोखिम में डाली। पिछले साल के नवंबर महीने में मुंबई पर हुए आतंकी हमले की लाइव कवरेज में भी बरखा आगे रहीं और पूरी मुस्तैदी से पल-पल की खबर देती रहीं।
- सियाचिन की पहली रिपोर्टर जांबाज रिपोर्टर अनीता प्रताप उस समय सुर्खियों में आई थीं, जब उन्होंने LTTE के प्रमुख प्रभाकरण का इंटरव्यू लिया था। साथ ही सियाचिन की बेहद प्रतिकूल परिस्थितियों में भी रिपोर्टिंग की।
- रिपोर्टिंग करना बहुत ही चुनौतीपूर्ण था कारगिल युद्ध के दौरान विक्रम चंद्रा की रिपोर्टिंग देखने लायक थी। इनकी रिपोर्टिंग को देख कर देश की धड़कनें तेज़ होती थीं।
- भोपाल गैस त्रासदी का कहर इस तरह हावी था कि कोई रिपोर्टिंग के लिए वहां जाना नहीं चाहता था। सभी अपनी जान की परवाह कर रहे थे। ऐसे में महेंद्र महर्षि नाम के एक युवा ने रिपोर्टिग के लिए हामी भरी। हालांकि इसका ख़ामियाज़ा उन्हें अब तक भुगतना पड़ रहा है। उन्हें अब सांस लेने में बहुत दिक्कत होती है।
- 1984 में सिख दंगे की रिपोर्टिंग सबसे भयावह थी आज भले ही आलोक तोमर हमारे बीच में न हों, लेकिन 1984 में हुए सिख दंगे की रिपोर्टिंग ने उन्हें अमर बना दिया। सफदरजंग से लेकर पूरी दिल्ली को उन्होंने जिस बहादुरी के साथ कवर किया था, वो अद्भुत था।
- गुजरात दंगा देश के जाने-माने पत्रकार राजदीप सरदेसाई कहते हैं कि इस घटना की रिपोर्टिंग मानो शेर की मांद में घुसना था। तलवार और हथियार लिए ख़ून से लथपथ लोग, सिर्फ़ दूसरे के ख़ून के प्यासे नज़र आ रहे थे। उस समय पत्रकार जिस संजीदगी के साथ रिपोर्टिंग कर रहे थे, वो बहुत ही रिस्की था।
- मेरी आंखों के सामने बाबरी विध्वंस हो रहा था दूरदर्शन में काम करने वाले अशोक श्रीवास्तव ने बाबरी विध्वंस की रिपोर्टिंग की थी। उस समय वे रिपोर्टिंग करना सीख रहे थे। वे कहते हैं कि भीड़ पागल हाथियों की तरह हमसे होकर गुजर रही थी, सिर्फ़ कैमरे की वजह से उनकी जान बची थी।
- जब पत्रकार को जिंदा जला दिया गया फेसबुक पर मंत्री के खिलाफ लिखने के कारण यूपी के एक पत्रकार जगेंद्र सिंह को जान गंवानी पड़ी। इस घटना ने पूरे पत्रकारिता जगत को सकते में डाल दिया था।
- मिड डे के क्राइम रिपोर्टर की गोली मारकर हत्या मुंबई के प्रमुख अंग्रेजी अखबार मिड डे के एक वरिष्ठ पत्रकार ज्योतिर्मय डे की उनके घर के बाहर अज्ञात बदमाशों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। ज्योतिर्मय डे अंडरवर्ल्ड के बारे में बहुत जानकारी रखते थे।