लखनऊ : मूल्यांकन सेल से भी पैसा लेते थे पूर्वकुलपति प्रो. आलोक राय

मूल्यांकन सेल से भी पैसा लेते थे पूर्वकुलपति प्रो. आलोक राय
लखनऊ। लखनऊ विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. आलोक राय पर वित्तीय अनियमितताओं के आरोप लग रहे हैं।
प्रो. राय अपने कार्यकाल में न केवल शोधार्थियों को बढ़ावा देने के नाम पर मानदेय लिया बल्कि मूल्यांकन सेल से भी मानदेय प्रतिदिन के हिसाब से लिया।
जितने दिन भी मूल्यांकन कार्य चला, उतने दिन का उन्होंने मानदेय लाखों रुपए में लिया।
उनके इस भ्रष्टाचार में वित्त अधिकारी भी बराबर की भागीदार रही हैं।
गौरतलब है कि लखनऊ विश्वविद्यालय में कई रेगुलर और सेल्फ फाइनेंस कोर्स संचालित होते है।
विश्वविद्यालय में परीक्षा के पश्चात उत्तर पुस्तिकाओं को जांचने का काम मूल्यांकन सेल में किया जाता है।
सेल का इचार्ज कोई शिक्षक होता है, जिसकी देखरेख में मूल्यांकन का कार्य होता है।
शिक्षण कार्य के अतिरिक्त वह यह काम करता है इसके लिए उसको निर्धारित ऑनरेरियम मिलता है।
मूल्यांकन सेलों में मुख्य रूप से कला, विज्ञान, वाणिज्य, विधि, एजुकेशन, सेल्फ फाइनेंस सेल हैं।
सूत्रों के अनुसार विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रोफेसर आलोक कुमार राय ने जितने भी दिन सेल में मूल्यांकन कार्य होता था, दो हजार से ढाई हजार रुपए प्रतिदिन की दर से प्रत्येक मूल्यांकन सेल से लेते थे।
जबकि नियमानुसार कुलपति या कोई भी अन्य विश्वविद्यालय अधिकारी इस प्रकार का मानदेय नहीं ले सकता।
सेल के इंचार्ज को 1500 रुपए प्रतिदिन का भुगतान होता था।
इस बिल की भनक सेल में काम करने वाले नीचे के अन्य शिक्षकों को कानों कान नहीं होती थी।ये बिल ऊपर के स्तर पर ही बन जाता था।
बिल पास करने का काम वित्त अधिकारी और कुलपति करते थे।
इस तरह प्रोफेसर आलोक कुमार राय
ने लखनऊ विश्वविद्यालय को लाखों का चूना लगाया।वह हर बिल में अपना ऑनरेरियम जरूर रखवाते थे।
इसीलिए सेल का इंचार्ज वह हमेशा अपने करीबी शिक्षक को ही बनाते थे, जिससे अपने मन माफिक बिल बनवा सके।
लखनऊ विश्वविद्यालय जहां एक तरफ आर्थिक तंगी से गुजर रहा है, वही प्रोफेसर आलोक कुमार राय ने नियम विरुद्ध तरीके से ऑनरेरियम के नाम पर हर साल लाखों कमाया।
विश्वविद्यालय और कॉलेज के शिक्षकों को पेपर सेटिंग और कॉपी चेकिंग के मानदेय का भुगतान भले ही कई वर्षों से न हुआ हो
लेकिन अधिकारियों ने बढ़ा-चढ़ा कर अपने बिल बनवाए और भुगतान करवाया।
प्रोफेसर आलोक कुमार राय को जहां बड़ा भुगतान करवाना होता था, वहां पर वह हमेशा अपने करीबी और विश्वसनीय शिक्षक को ही नियुक्त करते थे।



