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स्थापना के 100 साल बाद आज की चुनौतियां व संघर्ष अलग, संघ ने इनसे निपटने के लिए ठोस रोडमैप बनाया

स्थापना के 100 साल बाद आज की चुनौतियां व संघर्ष अलग, संघ ने इनसे निपटने के लिए ठोस रोडमैप बनाया

जब संघ अस्तित्व में आया था तो उस समय की आवश्यकताएं, उस समय के संघर्ष कुछ और थे। लेकिन आज 100 वर्षों बाद जब भारत विकसित होने की तरफ बढ़ रहा है तब आज के समय की चुनौतियां, संघर्ष अलग हैं। दूसरे देशों पर आर्थिक निर्भरता, हमारी एकता को तोड़ने की साजिशें, डेमोग्राफी में बदलाव के षड्यंत्र, हमारी सरकार इन चुनौतियों से तेजी से निपट रही है। मुझे ये खुशी है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी इन चुनौतियों से निपटने के लिए ठोस रोडमैप बनाया है।

100 वर्ष पूर्व विजयदशमी महापर्व पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना हुई थी। ये हजारों वर्षों से चली आ रही उस परंपरा का पुनर्स्थापन था, जिसमें राष्ट्र चेतना समय-समय पर उस युग की चुनौतियों का सामना करने के लिए, नए-नए अवतारों में प्रकट होती है। इस युग में संघ उसी अनादि राष्ट्र चेतना का पुण्य अवतार है। ये हमारी पीढ़ी के स्वयंसेवकों का सौभाग्य है कि हमें संघ के शताब्दी वर्ष जैसा महान अवसर देखने को मिल रहा है। मैं इस अवसर पर राष्ट्रसेवा के संकल्प को समर्पित कोटि-कोटि स्वयंसेवकों को शुभकामनाएं देता हूं। मैं संघ के संस्थापक, हम सभी के आदर्श परम पूज्य डॉक्टर हेडगेवार जी के चरणों में श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। 100 वर्षों की इस गौरवमयी यात्रा की स्मृति में सरकार ने विशेष डाक टिकट और स्मृति सिक्के भी जारी किए हैं।

जिस तरह विशाल नदियों के किनारे मानव सभ्यताएं पनपती हैं, उसी तरह संघ के किनारे भी सैकड़ों जीवन पुष्पित-पल्लवित हुए हैं। जैसे एक नदी जिन रास्तों से बहती है, उन क्षेत्रों को अपने जल से समृद्ध करती है, वैसे ही संघ ने इस देश के हर क्षेत्र, समाज के हर आयाम को स्पर्श किया है। जिस तरह एक नदी कई धाराओं में खुद को प्रकट करती है, संघ की यात्रा भी ऐसी ही है। संघ के अलग-अलग संगठन भी जीवन के हर पक्ष से जुड़कर राष्ट्र की सेवा करते हैं। शिक्षा, कृषि, समाज कल्याण, आदिवासी कल्याण, महिला सशक्तीकरण, समाज जीवन के ऐसे कई क्षेत्रों में संघ निरंतर कार्य करता रहा है। विविध क्षेत्र में काम करने वाले हर संगठन का उद्देश्य एक ही है, भाव एक ही है….राष्ट्र प्रथम।

गठन के बाद से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ राष्ट्र निर्माण का विराट उद्देश्य लेकर चला। इसकी पूर्ति के लिए संघ ने व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण का रास्ता चुना और इस पर चलने के लिए जो कार्यपद्धति चुनी, वो थी नित्य-नियमित चलने वाली शाखाएं। शाखा का मैदान, ऐसी प्रेरणा भूमि है, जहां से स्वयंसेवक की अहम् से वयं की यात्रा शुरू होती है। संघ की शाखाएं…व्यक्ति निर्माण की यज्ञवेदी हैं।

राष्ट्र निर्माण का महान उद्देश्य, व्यक्ति निर्माण का स्पष्ट पथ और शाखा जैसी सरल, जीवंत कार्यपद्धति, यही संघ की सौ वर्षों की यात्रा का आधार बने। इन्हीं स्तंभों पर खड़े होकर संघ ने लाखों स्वयंसेवकों को गढ़ा, जो विभिन्न क्षेत्रों में देश को आगे बढ़ा रहे हैं। प्रारंभ से ही देश की प्राथमिकता ही संघ की प्राथमिकता रही। आजादी की लड़ाई के समय परम पूज्य डॉक्टर हेडगेवार जी समेत अनेक कार्यकर्ताओं ने स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लिया, डॉक्टर साहब कई बार जेल तक गए। आजादी के बाद भी संघ निरंतर राष्ट्र साधना में लगा रहा। इस यात्रा में संघ के खिलाफ साजिशें भी हुईं, उसे कुचलने का प्रयास भी हुआ। समाज के साथ एकात्मता और सांविधानिक संस्थाओं के प्रति आस्था ने संघ के स्वयंसेवकों को हर संकट में स्थित प्रज्ञ रखा है, समाज के प्रति संवेदनशील बनाए रखा है।

प्रारंभ से संघ राष्ट्रभक्ति और सेवा का पर्याय रहा है। जब विभाजन की पीड़ा ने लाखों परिवारों को बेघर कर दिया, तब स्वयंसेवकों ने शरणार्थियों की सेवा की। हर आपदा में संघ के स्वयंसेवक अपने सीमित संसाधनों के साथ सबसे आगे खड़े होते रहे। यह केवल राहत नहीं थी, यह राष्ट्र की आत्मा को संबल देने का कार्य था। खुद कष्ट उठाकर दूसरों के दुख हरना…यह हर स्वयंसेवक की पहचान है। आज भी प्राकृतिक आपदा में हर जगह स्वयंसेवक सबसे पहले पहुंचने वालों में से एक रहते हैं।100 वर्षों की इस यात्रा में, संघ ने समाज के वििभन्न वर्गों में आत्मबोध व स्वाभिमान जगाया है। संघ उन क्षेत्रों में भी कार्य करता रहा है…जो दुर्गम हैं। आज सेवा भारती, विद्या भारती, एकल विद्यालय, वनवासी कल्याण आश्रम, आदिवासी समाज के सशक्तीकरण का स्तंभ बनकर उभरे हैं।

समाज में सदियों से घर कर चुकी जो बीमारियां हैं, ऊंच-नीच की भावना है, कुप्रथाएं हैं, ये हिन्दू समाज की बहुत बड़ी चुनौती रही हैं। डॉक्टर साहब से लेकर आज तक, संघ की हर महान विभूति ने, हर सर-संघचालक ने भेदभाव और छुआछूत के खिलाफ लड़ाई लड़ी है। परम पूज्य गुरु जी ने निरंतर ‘न हिन्दू पतितो भवेत्’ की भावना को आगे बढ़ाया। पूज्य बाला साहब देवरस जी कहते थे- छुआछूत अगर पाप नहीं, तो दुनिया में कोई पाप नहीं! सरसंघचालक रहते हुए पूज्य रज्जू भैया जी और पूज्य सुदर्शन जी ने भी इसी भावना को आगे बढ़ाया। वर्तमान सरसंघचालक आदरणीय मोहन भागवत जी ने भी समरसता के लिए समाज के सामने एक कुआं, एक मंदिर और एक श्मशान का स्पष्ट लक्ष्य रखा है।जब विभाजन की पीड़ा ने लाखों परिवारों को बेघर कर दिया, तब स्वयंसेवकों ने शरणार्थियों की सेवा की। हर आपदा में संघ के स्वयंसेवक अपने सीमित संसाधनों के साथ सबसे आगे खड़े होते रहे। यह केवल राहत नहीं थी, यह राष्ट्र की आत्मा को संबल देने का कार्य था। खुद कष्ट उठाकर दूसरों के दुख हरना…यह हर स्वयंसेवक की पहचान है।

जब संघ अस्तित्व में आया था तो उस समय की आवश्यकताएं, संघर्ष कुछ और थे। लेकिन आज 100 वर्षों बाद भारत विकसित होने की तरफ बढ़ रहा है तब चुनौतियां व संघर्ष अलग हैं। दूसरे देशों पर आर्थिक निर्भरता, हमारी एकता को तोड़ने की साजिशें, डेमोग्राफी में बदलाव के षड्यंत्र, हमारी सरकार इनसे तेजी से निपट रही है। खुशी है कि संघ ने भी इन चुनौतियों से निपटने के लिए ठोस रोडमैप बनाया है।

संघ के पंच परिवर्तन, स्व बोध, सामाजिक समरसता, कुटुंब प्रबोधन, नागरिक शिष्टाचार और पर्यावरण, ये संकल्प देश के समक्ष उपस्थित चुनौतियों को परास्त करने की बहुत बड़ी प्रेरणा हैं। स्व बोध की भावना का उद्देश्य गुलामी की मानसिकता से मुक्त होकर अपनी विरासत पर गर्व और स्वदेशी के मूल संकल्प को आगे बढ़ाना है। सामाजिक समरसता के जरिए वंचित को वरीयता देकर सामाजिक न्याय की स्थापना का प्रण है। आज इसको घुसपैठियों के कारण बड़ी चुनौती मिल रही है। देश ने भी इससे निपटने के लिए डेमोग्राफी मिशन की घोषणा की है। हमें कुटुंब प्रबोधन यानी परिवार संस्कृति व मूल्यों को भी मजबूत बनाना है। नागरिक शिष्टाचार के जरिए नागरिक कर्तव्य का बोध हर देशवासी में भरना है। पर्यावरण की रक्षा करते हुए भावी पीढ़ियों के भविष्य को सुरक्षित करना है।अपने इन संकल्पों को लेकर संघ अब अगली शताब्दी की यात्रा शुरू कर रहा है। 2047 के विकसित भारत में संघ का हर योगदान, देश की ऊर्जा बढ़ाएगा, देश को प्रेरित करेगा। पुन: प्रत्येक स्वयंसेवक को बहुत-बहुत शुभकामनाएं।

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