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*सावधान हवा खराब है: अपनी सांसें थाम के रखिए… आप लखनऊ में हैं… उम्मीद से ज्यादा जहरीली है शहर की हवा

*सावधान हवा खराब है: अपनी सांसें थाम के रखिए… आप लखनऊ में हैं… उम्मीद से ज्यादा जहरीली है शहर की हवा*

 

रिमोट सेंसिंग एप्लीकेशन सेंटर के मानसून बाद किए गए सर्वे में खुलासा हुआ है कि लखनऊ की हवा उम्मीद से ज्यादा जहरीली है। 282 जगहों से जुटाए गए आंकड़ों के आधार पर ये दावा किया गया है।

मुस्कुराइए… आप लखनऊ में हैं, इस स्लोगन पर गर्व करने से पहले यहां के हवा की सच्चाई जानना जरूरी है। रिमोट सेंसिंग एप्लीकेशन सेंटर (आरएसएसी) के मानसून बाद के सर्वे में खुलासा हुआ है कि राजधानी की हवा बेहद खराब है। सर्वे के दौरान शहर के कई इलाकों में वायु गुणवत्ता सूचकांक का स्तर 400 तक मिला है, जो बेहद खतरनाक है। ऐसे में ये भी कहना जरूरी है कि अपनी सांसें थाम के रखिए, क्योंकि आप लखनऊ में हैं।

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों में स्थिति अलग- प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड राजधानी में अपने छह वायु गुणवत्ता मापक सेंटरों के जरिये एक्यूआई की रिपोर्ट जारी करता है। इसमें सामान्य तौर पर शहर के इलाकों में एक्यूआई 50 से 250 के बीच यानी हरा, पीला या अधिकतम नारंगी श्रेणी में दिखाया जाता है। जबकि, आरएसएसी की रिपोर्ट के अनुसार शहर के कई इलाके लाल या बैंगनी श्रेणी में हैं। यहां एक्यूआई का स्तर 300 से 400 तक है, जिसे स्वास्थ्य के लिए बेहद गंभीर माना जाता है।

आरएसएसी के वैज्ञानिकों के अनुसार, राजधानी की हवा अब गंभीर रूप से प्रदूषित हो चुकी है। बढ़ती आबादी, बढ़ते वाहन और मानसून सीजन के बाद दिवाली पर छोड़े गए पटाखों ने शहर की हवा में जहर घोल रखा है। वैज्ञानिक ये भी मानते हैं कि इतने बड़े शहर में इतनी बड़ी आबादी के दबाव के बीच सिर्फ छह सेंटरों से वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) मापना अव्यावहारिक और नाकाफी है।500 वर्ग किमी में 40 लाख लोग, हवा पर बढ़ रहा दबावआरएसएसी की रिपोर्ट के अनुसार, लखनऊ लगभग 500 वर्ग किमी क्षेत्रफल में फैला है। यहां करीब 40 लाख से ज्यादा आबादी निवास करती है। उद्योगों के साथ ही सड़कों पर वाहनों की संख्या तेजी से बढ़ी है। इससे हवा में प्रदूषण के कारक तत्वों का दबाव बढ़ा है। अनियंत्रित निर्माण कार्यों ने भी हवा की गुणवत्ता को लगातार बिगाड़ा है।

कई इलाकों में हवा बीमार करने वाली

आरएसएसी के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. सुधाकर शुक्ला की अगुवाई में वैज्ञानिक डॉ. राजीव, नीलेश, पल्लवी, ममता, वैभव, शाश्वत, सौरभ और सुजीत की टीम ने 21 से 24 अक्तूबर के बीच शहर के 110 वाडों और सभी आठ जोन में 282 स्थानों पर मानसून बाद हवा की गुणवत्ता जांची।पोर्टेबल एक्यूआई डिटेक्टर से जुटाए गए आंकड़ों में सामने आया कि मानसून की विदाई और दिवाली के बाद कई इलाकों में वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्सआई) 400 से ऊपर पहुंच गया था। यह स्तर स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक है। दिवाली की रात और उसके अगले दिन जलाए गए पटाखों की वजह से राजधानी में शोर का स्तर 893 डेसिबल तक पहुंच गया। शोर का यह स्तर बुजुर्गों, दिल के मरीजों और पशु-पक्षियों के लिए बेहद घातक और भयावह है।दिवाली पर हरे भरे कैंट की भी हवा बिगड़ीसर्वे के मुताबिक अलीगंज, अमीनाबाद, चौक और विकासनगर जैसे घनी आबादी वाले इलाके वायु प्रदूषण से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। औद्योगिक क्षेत्र तालकटोरा में भी प्रदूषण का स्तर भयावह रूप ले चुका है। हरियाली की वजह से साफ हवा वाले कैंट इलाके की स्थिति भी अब पहले जैसी नहीं रही।

कृत्रिम बारिश का विचार सवालों के घेरे में, बच्चों के लिए है घातक

राजधानी दिल्ली समेत कई राज्यों की सरकारें प्रदूषण घटाने के लिए कृत्रिम बारिश के विकल्प पर विचार कर रही हैं। आरएसएसी के वैज्ञानिकों ने चेताया कि प्रदूषण घटाने के लिए सिल्वर आयोडाइड यौगिक से कृत्रिम बारिश कराने का तरीका बच्चों के लिए घातक साबित हो सकता है। यह खतरनाक यौगिक मिट्टी, पानी और वातावरण में स्थाई तौर पर जमा होकर त्वचा और श्वास संबंधी रोगों व समस्याओं को बढ़ा सकता है।सिर्फ छह सेंटरों से नहीं मापी जा सकती हवा की सच्चाई: वैज्ञानिकवैज्ञानिकों ने माना है कि सिर्फ छह एक्यूआई मॉनीटरिंग सेंटर पर्याप्त नहीं। शहर के अधिक से अधिक इलाकों में नए एक्यूआई मॉनीटरिंग सेंटर बनाए जाएं। इससे हर वार्ड में वायु प्रदूषण की सटीक तस्वीर सामने आएगी। इसके साथ ही आम लोगों को भी प्रदूषण रोकथाम के लिए सजग होना पड़ेगा। औद्योगिक उत्सर्जन, वाहनों के प्रदूषण की जांच, सही ट्रैफिक व्यवस्था, दिवाली पर पटाखों का सीमित उपयोग के साथ हरियाली को और बढ़ाना होगा।

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