संडे स्पेशल कहानी : संस्कार
संडे स्पेशल कहानी
24 नवंबर 2024
संकलनकर्ता : ठाकुर पवन सिंह
संस्कार
एक राजा के पास सुंदर घोड़ी थी। कई बार युद्ध में इस घोड़ी ने राजा के प्राण बचाये। घोड़ी राजा के लिये पूरी तरह से वफादार थी। कुछ दिनों के बाद इस घोड़ी ने एक बच्चे को जन्म दिया। बच्चा काना पैदा हुआ , पर शरीर हृष्ट पुष्ट व सुडौल था।
जब बच्चा बड़ा हुआ तो बच्चे ने मां से पूछा – मां मैं बहुत बलवान हूं , पर काना हूं ? यह कैसे हो गया ? इस पर घोड़ी बोली – बेटा जब मैं गर्भवती थी , तब राजा ने मेरे ऊपर सवारी करते समय मुझे एक कोड़ा मार दिया था। जिसके कारण तू काना हो गया ? यह बात सुनकर बच्चे को राजा पर गुस्सा आ गया और वह मां से बोला – मां मैं इसका बदला लूंगा ?
मां ने कहा , नहीं बेटा राजा ने हमारा पालन-पोषण किया है। तू जो स्वस्थ है , सुन्दर है , हृष्ट-पुष्ट है , सब उसी के पोषण से तो है। यदि राजा को एक बार गुस्सा आ गया , तो इसका अर्थ यह नहीं है कि हम उसे क्षति पहुचायें ? मगर उस बच्चे के समझ में कुछ नहीं आया। उसने मन ही मन राजा से बदला लेने की ठान ली ?
वह लगातार राजा से बदला लेने के बारे में सोचता रहता था और एक दिन यह मौका घोड़े को मिल गया। राजा उसे युद्ध पर ले गया। युद्व लड़ते – लड़ते राजा घायल हो गया। घोड़े के पास राजा को युद्ध के मैदान में छोड़कर भाग निकलने का पूरा मौका था।
यदि वह ऐसा करता , तो राजा या तो पकड़ा जाता या दुश्मनों के हाथों मार दिया जाता ?
मगर उस वक्त घोड़े के मन में ऐसा कोई ख्याल ही नहीं आया और वह राजा को तुरंत उठाकर वापस महल में ले आया। इस पर घोड़े को स्वयं ताज्जुब हुआ और उसने मां से पूछा – मां आज तो राजा से बदला लेने का सबसे अच्छा मौका था , पर युद्व के मैदान में मुझे बदला लेने का ख्याल ही नहीं आया और न ही मैं राजा से बदला ले पाया। मन ने ऐसा करने की गवाही नहीं दी ? ऐसा क्यों हुआ मां ?
इस पर मां ( घोडी ) हंसकर बोली – बेटा तेरे खून में और तेरे संस्कार में धोखा है ही नहीं ?
तू जान बूझकर तो धोखा दे ही नहीं सकता है ?
तुझसे नमक हरामी तो हो ही नहीं सकती ?
क्योंकि तेरी नस्ल में तेरी मां का अंश है। मेरे संस्कार और सीख को तू कैसे झुठला सकता था ?
सीख : दोस्तों यह सत्य है कि जैसे हमारे संस्कार होते हैं , वैसा ही हमारे मन का व्यवहार होता है। हमारे पारिवारिक संस्कार अवचेतन मस्तिष्क में गहरे बैठ जाते हैं। माता-पिता जिस संस्कार के होते हैं , उनके बच्चे भी उसी संस्कारों को लेकर पैदा होते हैं। हमारे कर्म ही ‘संस्कार’ बनते हैं और संस्कार ही प्रारब्धों का रूप लेते हैं। यदि हम अपने कर्मों को सही व बेहतर दिशा दे दें , तो संस्कार अच्छे बनेंगे और यदि संस्कार अच्छे बनेंगे , तो जो प्रारब्ध का फल बनेगा , वह भी अच्छा होगा।
संकलनकर्ता : ठाकुर पवन सिंह
मोबाइल नंबर : 9258563121
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