लखनऊ लोहिया संस्थान की इमारत बाहर से भले ही चमक रही हो पर अंदर अव्यवस्थाओं का जाल फैला हुआ है। पर्चा व दवा काउंटर के साथ ओपीडी में लंबी लाइनें लगी हुई हैं।

लखनऊ लोहिया संस्थान की इमारत बाहर से भले ही चमक रही हो पर अंदर अव्यवस्थाओं का जाल फैला हुआ है। पर्चा व दवा काउंटर के साथ ओपीडी में लंबी लाइनें लगी हुई हैं।
डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान का बाहर से सिर्फ बिल्डिंग ही चमक रहा है, अंदर अव्यवस्थाओं का जाल फैला हुआ है। यहां बदइंतजामी इस कदर हावी है कि मरीजों के पर्चा बनवाने में ही चार-पांच घंटे निकल जाते हैं। ऐसे में उन्हें डॉक्टरों को दिखाने, जांच कराने और दवा लेने का समय ही नहीं मिलता। वहीं, दो बजे डॉक्टर कुर्सी भी छोड़ देते हैं।
राजधानी स्थित लोहिया संस्थान में बृहस्पतिवार को अव्यवस्थाओं की भरमार रही। संस्थान में सुबह से ही पर्चा काउंटरों पर लंबी कतारें देखने को मिलीं। लोग खड़े-खड़े थक कर जमीन पर बैठ गए, कई तो काउंटर के सहारे झपकी लेने लगे। कई मरीज और तीमारदार डॉक्टरों या जांच कक्षों को ढूंढते-ढूंढते परेशान हो गए। मरीजों का कहना है कि जब तक पर्चा बनता है, तब तक दोपहर के दो बज जाते हैं और डॉक्टर अपनी कुर्सी छोड़ चुके होते हैं। इससे डॉक्टर को दिखाना और दवा लेना तक मुश्किल हो जाता है।
ओपीडी में कुर्सियां टूटीं, दवा काउंटर पर अफरातफरीओपीडी में व्यवस्था का हाल भी कुछ बेहतर नहीं है। मरीज टूटी-फूटी कुर्सियों पर बैठकर अपनी बारी का इंतजार करते दिखे, जो किसी तरह डॉक्टर को दिखा भी लेते हैं, उन्हें दवा लेने में जद्दोजहद करनी पड़ती है। फॉर्मेसी पर सैकड़ों मरीजों की लाइन लगी रहती है, जिससे कई मरीज थक-हार कर लौटने को मजबूर हो जाते हैं। दवा लेने पहुंचे एक मरीज ने बताया कि उन्हें बुखार और खांसी की दवाएं लेनी थीं, लेकिन पर्चा बनवाने के लिए काउंटर पर पहुंचे तो बताया गया कि एक बजे काउंटर बंद हो जाता है।
बुनियादी सुविधाओं का अभाव
अस्पताल के अंदर और बाहर मरीजों व तीमारदारों के बैठने की कोई समुचित व्यवस्था नहीं है। लोग जमीन पर बैठे और लेटे नजर आते हैं। परिसर में लगे आरओ खराब पड़े हैं, जबकि वाटर कूलर से गुनगुना पानी निकल रहा है। नतीजतन लोग बाहर से पानी खरीदकर पीने को मजबूर हैं।
बाहर से हो पहचान तो काम होता आसान
बस्ती से आए रामलखन ने बताया, अगर यहां किसी से जान-पहचान नहीं है तो पर्चा बनवाना अपने आप में जंग लड़ने जैसा है। वहीं, मोहित ने बताया कि उनके एक जानने वाले के जरिये पर्चा तुरंत बन गया और भर्ती की प्रक्रिया भी आसानी से पूरी हो गई। एक अन्य मरीज अनूप ने बताया, डॉक्टर जांच तो लिख देते हैं, लेकिन जांच की तारीख दो-तीन दिन बाद की मिलती है। ऐसे में इलाज में अनावश्यक देरी हो जाती है।