लखनऊ जनसुनवाई में दिखा उपभोक्ताओं का गुस्सा… बिजली निजीकरण का विरोध, किसानों ने भी जताया आक्रोश

लखनऊ जनसुनवाई में दिखा उपभोक्ताओं का गुस्सा… बिजली निजीकरण का विरोध, किसानों ने भी जताया आक्रोश
जनसुनवाई में उपभोक्ताओं का गुस्सा साफ दिखा। कर्मचारी संगठनों के साथ ही उपभोक्ताओं एवं किसानों ने बिजली निजीकरण का विरोध किया। कानपुर, वाराणसी, आगरा, नोएडा और मेरठ के बाद अब लखनऊ में विरोध की तैयारी शुरू हो गई है।
उत्तर प्रदेश में पूर्वांचल एवं दक्षिणांचल के निजीकरण का विरोध बढ़ता जा रहा है। बिजली दर की सुनवाई के दौरान कर्मचारी संगठनों के साथ ही उपभोक्ताओं एवं किसानों ने जबरदस्त विरोध किया। अब लखनऊ में 21जुलाई को होने वाली जनसुनवाई में विरोध की तैयारी शुरू हो गई है। इसे लेकर संघर्ष समिति जनसंपर्क अभियान शुरू कर दी है तो उपभोक्ता परिषद तकनीकी बारीकियों पर सवाल खड़े करने की तैयारी में हैं।
सुनवाई पूरी होने के बाद नियामक आयोग बिजली दरें तय करेगा। इस बार की जनसुनवाई के दौरान वाराणसी से लेकर मेरठ तक बिजली दर को नजरअंदाज करके निजीकरण पर जबरदस्त विरोध हुआ। हर जगह निजीकरण को रद्द करने की मांग उठती रही। लखनऊ में होने वाली सुनवाई को लेकर विरोध की तैयारी शुरू हो गई है। पूर्वांचल, दक्षिणांचल, पश्चिमांचल, मध्यांचल, केस्को द्वारा विद्युत नियामक आयोग में कुल लगभग 113060 करोड़ का वार्षिक राजस्व आवश्यकता दाखिल किया गया है।
इस वर्ष लगभग 86952 करोड़ की बिजली खरीदी जानी है। प्रदेश सरकार की तरफ से राजकीय सब्सिडी 17511 करोड़ मिलनी है । कार्पोरेशन की तरफ से वर्ष 2025 -26 में कुल लगभग 19644 करोड़ का गैप दिखाया गया है। कार्पोरेशन ने कुल घाटा करीब 24022 करोड़ प्रस्तावित किया है। ऐसे में बिजली घरों में औसत 28 फीसदी और घरेलू विद्युत उपभोक्ताओं की दरों में लगभग 45 फीसदी तक की बढ़ोतरी प्रस्तावित की गई है।
नहीं बढ़ने दी जाएंगी बिजली दरें, निजीकरण भी होगा रद्द
राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि उपभोक्ताओं का निगमों पर बकाया 33122 करोड़ लौटाया जाए। इसके बाद बिजली दर बढ़ाने पर विचार होना चाहिए। जब तक उपभोक्ताओं का बकाया नहीं लौटाया जाता है तब तक बिजली दर नहीं बढ़ने दी जाएगी। जिस तरह से जनसुनवाई के दौरान हर वर्ग के लोग निजीकरण का विरोध कर रहे हैं, उसे तत्काल रद्द किया जाए।
प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में जनसुनवाई के दौरान निजीकरण का सर्वाधिक विरोध हुआ है। इसी तरह स्मार्ट मीटर लगाने का भी विरोध हो रहा है। कई निगमों में किसानों को दी जा रही मुफ्त बिजली योजना में भी शिकायतें मिली हैं। राज्य उपभोक्ता परिषद अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि प्रदेश सरकार को और विद्युत नियामक आयोग को अब मान लेना चाहिए कि निजीकरण और बिजली दर बढ़ोतरी के खिलाफ आम जनमानस में रोष है।
उत्पीड़नात्मक कार्रवाई का आरोप, बिजली कर्मियों में आक्रोश
विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने कार्पोरेशन प्रबंधन पर उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए आक्रोश जताया है। मुख्यमंत्री से मांग की है समिति के पदाधिकारियों ने कहा कि 22 को लखनऊ में होने वाली जनसुनवाई के दिन प्रदेशभर में विरोध प्रदर्शन किया जाएगा। उन्होंने कहा कि निजीकरण के विरोध में चल रहे आंदोलन को व्यापक जन आंदोलन बनते देख पावर कार्पोरेशन प्रबंधन बौखलाया हुआ है। मनोबल तोड़ने के लिए मनमाने ढंग से उत्पीड़न किया जा रहा है। बिजली कर्मियों के घरों पर रियायती बिजली की सुविधा समाप्त करने के लिए स्मार्ट मीटर लगाने की प्रक्रिया शुरू की गई है जो पूरी तरह से गलत है। डिजिटल हाजिरी के नाम पर करीब दो हजार से अधिक कार्मिकों का जून माह का वेतन रोक दिया गया है। इससे तमाम परिवार आर्थिक तंगी का सामना कर रहे हैं। लगभग 45 फीसदी संविदा कर्मचारियों की सेवाएं समाप्त कर दी गई हैं।