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यूपी सरकार से हाईकोर्ट में तैनात सरकारी वकीलों का ब्योरा तलब किया, प्रक्रिया को लेकर उठे सवाल

यूपी सरकार से हाईकोर्ट में तैनात सरकारी वकीलों का ब्योरा तलब किया, प्रक्रिया को लेकर उठे सवाल

हाईकोर्ट ने 22 को सरकारी वकीलों के मामलों में पहले दिए फैसलों को पेश करने का निर्देश दिया है। मामले में चार पीआईएल के जरिये तैनाती में पारदर्शी प्रक्रिया अपनाने का अनुरोध किया गया है।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय और लखनऊ पीठ में सरकारी वकीलों की तैनाती प्रक्रिया को चुनौती के मामले में हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने यूपी सरकार से सरकारी वकीलों की तैनाती का ब्योरा मांगा है। कोर्ट ने अगली सुनवाई पर 22 सितंबर को पक्षों के वकीलों को सरकारी वकीलों की तैनाती मामलों में पहले दिए गए फैसलों को पेश करने का भी निर्देश दिया है।
न्यायमूर्ति राजन रॉय और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की खंडपीठ ने शुक्रवार को यह आदेश चार जनहित याचिकाओं पर दिया। इसमें हाईकोर्ट में सरकारी वकीलों की तैनाती में पारदर्शी प्रक्रिया अपनाने का आग्रह किया गया है। साथ ही सरकारी वकीलों की तैनाती के 1975 के एलआर मैनुअल में भी संशोधन करने की गुजारिश की गई है। सुनवाई के समय महाधिवक्ता अजय कुमार मिश्र वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए पेश हुए। कोर्ट ने राज्य सरकार के मुख्य स्थायी अधिवक्ता शैलेंद्र कुमार सिंह को हाईकोर्ट में अब तक तैनात किए गए सरकारी वकीलों का पूरा ब्योरा पेश करने का निर्देश दिया है।

बता दें कि मामले में वर्ष 2017 में दाखिल महेंद्र सिंह पवार की जनहित याचिका समेत चार जनहित याचिकाओं पर फाइनल सुनवाई चल रही है। इनमें हाईकोर्ट में सरकारी वकीलों की तैनाती प्रक्रिया पर सवाल उठाए गए हैं।राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि सरकारी वकीलों की तैनाती, महाधिवक्ता की अध्यक्षता में बनी तीन सदस्यीय समिति ने की है। इस पर याचियों के वकीलों ने कहा कि हाईकोर्ट में दो हजार से अधिक सरकारी वकीलों की तैनाती में हर एक की योग्यता व क्षमता का आकलन करना समिति के सदस्यों के लिए संभव नहीं था। वहीं, कोई प्रक्रिया भी नहीं अपनाई गई। यह भी आरोप लगाया कि तैनाती प्रक्रिया साफ न होने की वजह से इसमें भाई-भतीजावाद को बढ़ावा मिलता है। उधर, सरकार की ओर से इन दलीलों का विरोध किया गया। इस पर, कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 22 सितंबर को नियत कर मौजूदा समय हाईकोर्ट में तैनात सरकारी वकीलों का ब्योरा तलब किया है।

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