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माघ मेले के लिए पहली बार जारी हुआ लोगो, दर्शायी गई है तीर्थराज और त्रिवेणी की महिमा

माघ मेले के लिए पहली बार जारी हुआ लोगो, दर्शायी गई है तीर्थराज और त्रिवेणी की महिमा

प्रयागराज संगम पर लगने वाले माघ मेले के इतिहास में पहली बार माघ मेले के लिए लोगों जारी किया गया है। लोगों में तीर्थराज प्रयागराज और त्रिवेणी की महिमा दर्शायी गई है। साथ ही इसमें श्री बड़े हनुमानजी मंदिर, अक्षयवट भी प्रतिबिंबित हो रहा है। साधु-संतों के साथ संगम की पहचान साइबेरियन पक्षी भी इसमें दिख रहे हैं। श्लोक “माघे निमज्जनं यत्र पापं परिहरेत् तत:” अंकित है, जिसका अर्थ है माघ के महीने में स्नान करने से सभी पाप मुक्ति हो जाती है।

गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम तट पर लगने वाले माघ मेले के लिए पहली बार लोगो जारी किया गया है। माघ मेले के इतिहास में पहली बार मेले के दर्शन तत्त्व को परिलक्षित करते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के स्तर से माघ मेले का लोगो जारी किया गया है। इस लोगो के अंतर्गत तीर्थराज प्रयाग, संगम की तपोभूमि तथा ज्योतिषीय गणना के अनुसार माघ मास में संगम की रेती पर अनुष्ठान करने की महत्वता को समग्र रूप से दर्शाया गया है।

माघ मेले के लिए जारी लोगो में सूर्य एवं चंद्रमा की 14 कलाओं की उपस्थिति ज्योतिषीय गणना के अनुसार सूर्य, चंद्रमा एवं नक्षत्रों की स्थितियों को प्रतिबिंबित करता है जो प्रयागराज में माघ मेले का कारक बनता। भारतीय ज्योतिषीय गणना के अनुसार चंद्रमा 27 नक्षत्रों की परिक्रमा लगभग 27.3 दिनों में पूर्ण करता है। माघ मेला इन्हीं नक्षत्रीय गतियों के अत्यंत सूक्ष्म गणित पर आधारित है। जब सूर्य मकर राशि में होता है और पूर्णिमा के दिन चंद्रमा माघी या अश्लेषा-पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्रों के समीप होता है, तब माघ मास बनता है और उसी काल में माघ मेला आयोजित होता है।

माघ मेले में सक्रिय होती हैं चंद्र की 14 कलाएंचंद्रमा की 14 कलाओं का संबंध मानव जीवन, मनोवैज्ञानिक ऊर्जा और आध्यात्मिक साधना से माना गया है। माघ मेला चंद्र-ऊर्जा की इन कलाओं के सक्रिय होने का विशेष काल भी है। अमावस्या से पूर्णिमा की ओर चंद्रमा की वृद्धि (शुक्ल पक्ष) साधना की उन्नति के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी गई है। माघ स्नान की तिथियाँ चंद्र कलाओं के अत्यंत सूक्ष्म संतुलन पर चुनी जाती हैं। माघ महीने की ऊर्जा (शक्ति) अनुशासन, भक्ति और गहन आध्यात्मिक कार्यों से जुड़ी होती है क्योंकि यह महीना पवित्र नदियों में स्नान, दान, तपस्या और कल्पवास जैसे कार्यों के लिए विशेष माना जाता है। इस माह में किए गए कार्य व्यक्ति को निरोगी बनाते हैं और उसे दिव्य ऊर्जा से भर देते हैं।

अक्षयवट की शाखाओं में है भगवान शिव का वासप्रयागराज का अविनाशी अक्षयवट, जिसकी जड़ों में भगवन ब्रह्मा जी का, तने में भगवन विष्णु जी का एवं शाखाओं और जटाओं में भगवन शिव जी का वास है। दर्शन मात्र से मोक्ष मार्ग सरल हो जाता है। इसी कारण कल्पवासियों में उसका स्थान अद्वितीय है। सनातन धर्म के अनुसार मनुष्य जीवन का परम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति हैं। इसलिए महात्मा का चित्र इस देव भूमि में सनातनी परंपरा को दर्शाता है, जहां चिर काल से ऋषि-मुनि आध्यात्मिक ऊर्जा हेतु आते रहे हैं।

माघ मास में किए गए पूजन एवं कल्पवास का पूर्ण फल संगम स्नान के उपरांत श्री बड़े हनुमान जी के दर्शन से प्राप्त होता है। इसलिए लोगो पर उनके मंदिर एवं पताका की उपस्थिति माघ मेले में किए गए तप की पूर्णता: की व्याख्या करता है। संगम पर साइबेरियन पक्षियों की उपस्थिति यहां के पर्यावरण की विशेषता को दर्शाता है। लोगो पर श्लोक “माघे निमज्जनं यत्र पापं परिहरेत् तत:” का अर्थ है माघ के महीने में स्नान करने से सभी पाप मुक्ति हो जाती है। यह लोगो मेला प्राधिकरण द्वारा आबद्ध किए गए डिजाइन कंसल्टेंट अजय सक्सेना एवं प्रागल्भ अजय द्वारा डिजाइन किया गया।

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