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पितृपक्ष की शुरुआत आज से, श्राद्ध व पिंडदान दिलाएगा पितृदोष से मुक्ति

पितृपक्ष की शुरुआत आज से, श्राद्ध व पिंडदान दिलाएगा पितृदोष से मुक्ति

लखनऊ। पितृ पक्ष भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से शुरू होता है। भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि इस बार 7 सितंबर को है। ऐसे में पितृ पक्ष की शुरुआत रविवार से ही होगी। समापन आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि 21 सितंबर को होगा। मान्यता है कि पितृपक्ष अवधि के दौरान सभी पूर्वज अपने परिजनों को आशीर्वाद देने के लिए पृथ्वी पर आते हैं। उन्हें प्रसन्न करने के लिए तर्पण, श्राद्ध और पिंड दान किया जाता है। पितृपक्ष में किए गए दान-धर्म से पूर्वजों की आत्मा को तो शांति मिलती है। पितृ ऋण से मुक्ति भी मिलती है। पितरों के श्राद्ध और पिंडदान से पितृदोष से मुक्ति मिलती है।रायबरेली के बछरावां निवासी पंडित आनंद अवस्थी के अनुसार, शास्त्रों में गृहस्थ मनुष्यों के लिए तीन प्रकार के ऋण व्यक्त किए गए हैं, जिनमें पितृऋण, देवऋण, ऋषि ऋण प्रमुख हैं। पितृऋण को श्राद्ध के माध्यम से उतारा जाता है। वर्ष में सिर्फ एक बार अपने पितरों को उनकी मृत्यु तिथि पर जल, तिल, जौ, कुश, पुष्प आदि से उनका सम्मान करने, गाय को ग्रास देकर, ब्राह्मणों को भोजन करा देने मात्र से यह ऋण उतर जाता है।

ज्योतिषाचार्य एसएस नागपाल के अनुसार, 7 सितंबर को पूर्णिमा का श्राद्ध , 8 को प्रतिपदा का श्राद्ध, 9 को द्वितीया का श्राद्ध, 10 को तृतीया और चतुर्थी का श्राद्ध होगा। इसके अलावा 11 को पंचमी , 12 को षष्ठी, 13 को सप्तमी, 14 को अष्टमी, 15 को नवमी पर सौभाग्यवती स्त्रियों का श्राद्ध किया जाएगा। 16 को दशमी, 17 को एकादशी, 18 को द्वादशी/ संन्यासियों का श्राद्ध, 19 को त्रयोदशी, 20 को चतुर्दशी, 21 को अमावस्या के श्राद्ध के साथ ही सर्वपितृ अमावस्या, सर्वपितृ अमावस्या का श्राद्ध किया जाएगा। पितृ कर्म के लिए दिन में 11:36 से 12:24 बजे तक कुतुप काल, 12:24 से 1:12 बजे तक रोहिण काल और दोपहर 1:12 से 3:55 बजे तक के समय को उपयुक्त माना गया है।

पितृ पक्ष में ये कार्य करने से बचेंपं. आनंद अवस्थी के मुताबिक, बासी व दुर्गंधयुक्त भोजन का श्राद्ध में उपयोग न करें। सब्जियों में बैंगन का प्रयोग न करें। मदिरा का प्रयोग वर्जित है। लौह पात्र में न तो स्वयं भोजन करें, न ही किसी को कराएं। खान-पान में पत्तल और केले के पत्तों का इस्तेमाल करें। सात्विक अन्न और फलों से पितरों की तृप्ति होती है। योग्य ब्राह्मणों को ही भोजन कराएं। गया (बिहार) में श्राद्ध पिंडदान करने से मनुष्य की सात पीढि़यों के पितरों को मुक्ति मिलती है।

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