Breaking Newsभारत

लखनऊ चार और डॉक्टरों ने केजीएमयू को कहा अलविदा

लखनऊ चार और डॉक्टरों ने केजीएमयू को कहा अलविदा

लखनऊ। केजीएमयू में डाक्टरों की भर्ती के बीच विदाई का सिलसिला भी जारी है। यहां से चार डॉक्टरों ने इस्तीफा दे दिया है। इन डॉक्टर ने नोटिस अवधि पूरी करने के बजाय तीन महीने का वेतन जमा कर दिया है। संस्थान ने इनको रिलीव भी कर दिया है।केजीएमयू छोड़ने वाले डाॅक्टरों में पहला नाम मनोरोग विभाग के डाॅ. मनु अग्रवाल का है। इनके साथ ही एनेस्थीसिया विभाग की डाॅ. तन्वी भार्गव, प्लास्टिक सर्जरी विभाग के डाॅ. अशोक कुमार गुप्ता और कार्डियक एनेस्थीसिया विभाग के डाॅ. करण काैशिक शामिल हैं। डाॅ. तन्वी भार्गव का चयन संजय गांधी पीजीआई और डाॅ. अशोक कुमार गुप्ता का चयन डाॅ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में हो गया है। वहीं, डाॅ. मनु अग्रवाल और डाॅ. करण काैशिक के अन्य संस्थान जाने की कोई स्पष्ट जानकारी नहीं मिल सकी है।

तीन और डाॅक्टर दे चुके हैं इस्तीफाइन चार डाॅक्टरों से पहले तीन और डाॅक्टर इस्तीफा दे चुके हैं। इनमें पूर्व प्राॅक्टर प्रो. क्षितिज श्रीवास्तव, मनोरोग विशेषज्ञ प्रो. आदर्श त्रिपाठी और रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के डाॅ. अजय कुमार वर्मा शामिल हैं।
ये डॉक्टर भी छोड़ चुके हैं केजीएमयूएंडोक्राइन मेडिसिन- डॉ. मधुकर मित्तलगैस्ट्रो सर्जरी- डॉ. संदीप वर्मा, डॉ. साकेत, डॉ. विशाल, डॉ. प्रदीप जोशीनेफ्रोलॉजी- डॉ. संत पांडेयन्यूरो सर्जरी- डॉ. सुनील कुमार, प्रो. क्षितिज श्रीवास्तवट्रांसप्लांट यूनिट- डॉ. मनमीत सिंह, डॉ. विवेक गुप्तासीवीटीएस- डॉ. विजयंत देवगठिया रोग- डॉ. अनुपम वाखलूयूरोलॉजी विभाग- डॉ. राहुल जनक सिन्हामनोरोग- प्रो. आदर्श त्रिपाठीरेस्पिरेटरी मेडिसिन- प्रो. अजय कुमार वर्मानिजी अस्पतालों में कई गुना ज्यादा वेतनसरकारी संस्थानों में असिस्टेंट प्रोफेसर के वेतन की शुरुआत करीब सवा लाख रुपये मासिक से होती है। प्रोफेसर के स्तर पर यह वेतन तीन लाख रुपये पहुंच जाता है। ये डाॅक्टर जब निजी अस्पताल जाते हैं तो वहां उन्हें इससे कई गुना ज्यादा वेतन मिल जाता है। कई बार यह वेतन 10 लाख रुपये मासिक तक हो जाता है। इसके अलावा इन्सेन्टिव अलग से मिलता है। सरकारी अस्पतालों से पलायन की यह भी एक वजह होती है।
विशेषज्ञता के बावजूद समान वेतन भी पलायन की वजहसरकारी चिकित्सा संस्थानों से डॉक्टरों के पलायन के पीछे कॉरपोरेट अस्पतान्से मिलने वाला तगड़ा पैकेज ही अकेली वजह नहीं है। सरकारी संस्थानों में डॉक्टर की कुशलता और विशेषज्ञता के बजाय सभी को एक समान वेतन मिलता है। एनॉटमी, फिजियोलॉजी और बायोकेमिस्ट्री जैसे नॉन क्लीनिकल विभाग के शिक्षकों को भी सुपर स्पेशियलिस्ट डॉक्टरों के समान वेतन और सुविधाएं मिलती हैं, जबकि सुपर स्पेशियलिस्ट डॉक्टरों को डिग्री हासिल करने में कई अतिरिक्त साल लगाने पड़ते हैं और उनके काम करने के घंटे भी अपेक्षाकृत ज्यादा होते हैं। शासनादेश के अनुसार, सभी एमबीबीएस डॉक्टरों को उनके मूल वेतन के निर्धारित प्रतिशत का अतिरिक्त भुगतान नॉन प्रैक्टिसिंग अलाउंस के रूप में किया जाता है। इसका मकसद उन्हें निजी प्रैक्टिस से रोकना है। यह सभी नाॅन क्लीनिकल विभागों के डॉक्टरों को भी मिलता है।Iजिन डाॅक्टरों ने इस्तीफा दिया है, उन्होंने हाल में ही जाॅइन किया था। कुछ ने अन्य संस्थानों में उनकी नियुक्ति होने और कुछ ने निजी कारणों से इस्तीफा दिया है। II- प्रो. केके सिंह, प्रवक्ता, केजीएमयूIIसरकार को बनानी चाहिए नीतिIIसरकारी संस्थान से डाॅक्टरी की पढ़ाई करने वाले डाॅक्टरों के लिए सरकार को नीति बनानी चाहिए। सरकारी संस्थान में भविष्य की सुरक्षा के साथ ही गरीब मरीजों के लिए करने लायक बहुत कुछ है। वहीं, निजी अस्पताल में ऐसा कुछ नहीं है। II- प्रो. संतोष कुमार, महामंत्री, केजीएमयू शिक्षक संघI

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button