गोरखपुर की 163 वर्ष पुरानी रामलीला परंपरा; अनोखा होता है राघव-शक्ति का मिलन

गोरखपुर की 163 वर्ष पुरानी रामलीला परंपरा; अनोखा होता है राघव-शक्ति का मिलन
इस प्रसिद्ध रामलीला की शुरुआत शहर के जाने-माने पुरुषोत्तम दास, गुलाबचंद, लखन चंद और बाबू जगन्नाथ अग्रवाल ने की थी.
गोरखपुर:वैश्विक बदलाव और डिजिटल युग में भी गोरखपुर की 163 साल पुरानी रामलीला परंपरा कायम है. यह मंचन समृद्ध परंपरा, संस्कृति और आस्था के प्रति आम जनमानस के लगाव को भी दर्शाता है. बर्डघाट रामलीला मैदान द्वारा इस रामलीला का मंचन नवरात्रि के दो दिन पहले शुरू हो जाता है. मोबाइल और रील्स के जमाने में भी हजारों की संख्या में शहर और देहात के लोग रामलीला देखने पहुंचते हैं. यह इसकी लोकप्रियता का भी प्रमाण है.
इस प्रसिद्ध रामलीला की शुरुआत शहर के जाने-माने पुरुषोत्तम दास, गुलाबचंद, लखन चंद और बाबू जगन्नाथ अग्रवाल ने की थी. यहां रामलीला मंचन के लिए अयोध्या से कलाकार आते हैं. सभी कलाकार ब्राह्मण होते हैं.
रामलीला समिति और सर्राफा मंडल का सहयोग:रामलीला समिति के अध्यक्ष गणेश वर्मा ने बताया कि राम बारात और वन गमन के जुलूस से बड़ी संख्या में जनता जुड़ती है. आस्था और श्रद्धा के साथ लोग इसका हिस्सा बनते हैं. यह आयोजन सनातन परंपरा को मजबूती देती है. मानस में जिस तरह भगवान राम के जन्म, विवाह और रावण बध की कथा लिखी है, उसी अनुरूप यहां मंचन होता है. आयोजन रामलीला समिति और सर्राफा मंडल के सहयोग से किया जाता है.
हजारों की भीड़ उमड़ती है:रामलीला समिति के पूर्व अध्यक्ष पंकज गोयल कहते हैं, कि बर्डघाट रामलीला मैदान पर होने वाली इस रामलीला का मंचन देखने के लिए, शहर ही नहीं बल्कि आसपास के गांव के लोग भी आते हैं. बहुत से परिवार इसे अपनी परंपरा मानते हैं. अयोध्या की जनक दुलारी आदर्श सेवा समिति द्वारा रामलीला का मंचन किया जा रहा है.
अनोखा होता है राघव-शक्ति मिलन:उन्होंने बताया कि रामलीला समिति द्वारा और भी अद्भुत कार्य किया जाता है. जब भगवान श्रीराम को मां दुर्गा से मिलने का अवसर मिलता है. इस परंपरा का नाम राघव-शक्ति मिलन है. विजयादशमी के दिन रामलीला मैदान में भगवान श्रीराम, रावण का वध करने के बाद माता सीता, भाई लक्ष्मण और भक्त हनुमान के साथ विजय जुलूस लेकर दुर्गा मिलन चौक, बसंतपुर तिराहे पर पहुंचते हैं.
वहां शहर की प्राचीनतम दुर्गाबाड़ी की प्रतिमा का पूजन और आरती करते हैं. रावण से युद्ध में विजय दिलाने के लिए उनके प्रति आभार व्यक्त करते हैं. इस अद्भुत पल को देखने के लिए हजारों की संख्या में श्रद्धालु बसंतपुर पहुंचते हैं. ऐसी परंपरा देश में और कहीं देखने को नहीं मिलती.
इस सम्मेलन की शुरुआत 1948 में मोहनलाल यादव, रामचंद्र सैनी, मेवा लाल यादव और रघुवीर मास्टर ने मिलकर राघव शक्ति मिलन कमेटी की स्थापना करके शुरू की थी. तभी से इस परंपरा का निर्वहन निरंतर हो रहा है.
हर धर्म के लोग होते हैं शामिल:कमेटी के अध्यक्ष गणेश वर्मा कहते हैं, कि रामलीला मंचन के माध्यम से रामायण के प्रसंग, राम जन्म, वनवास, सीता हरण रावण वध होता है. यह आयोजन अब केवल धार्मिक उत्सव नहीं बल्कि लोगों के लिए नैतिक मूल्य, आदर्श जीवन और सांस्कृति धरोहर को आत्मसात करने का अवसर बन चुका है. इसके जरिए शहर भक्ति और संस्कृति की ज्योति से आलोकित होता है.



