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गाजीपुर : डॉक्टरों की कोई जात नहीं होती: समाज को आईना देखने की ज़रूरत

बेद प्रकाश पाण्डेय ब्यूरो चीफ गाजीपुर।

आज दिनांक।28/08/025को

डॉक्टरों की कोई जात नहीं होती: समाज को आईना देखने की ज़रूरत

गाजीपुर। डॉक्टर—एक ऐसा नाम, जो किसी जाति, धर्म या समुदाय से ऊपर उठकर केवल सेवा और समर्पण का प्रतीक है। मगर अफसोस की बात है कि आज समाज का एक बड़ा वर्ग डॉक्टरों को भी जातिगत खाँचों में बाँटने लगा है। यह प्रवृत्ति न केवल दुर्भाग्यपूर्ण है, बल्कि सामाजिक सौहार्द और चिकित्सा व्यवस्था दोनों के लिए खतरनाक संकेत है।

अस्पताल में इलाज करते समय डॉक्टर न यादव होता है, न ब्राह्मण, न किसी अन्य जाति का—वह सिर्फ़ डॉक्टर होता है, जो मरीज की जान बचाने में अपनी पूरी क्षमता झोंक देता है। लेकिन जैसे ही कोई ग़लती या अनहोनी होती है, समाज का रवैया अचानक बदल जाता है। वही डॉक्टर, जो अभी तक ‘देवदूत’ कहा जा रहा था, जाति की दीवारों में कैद कर दिया जाता है। विरोध, नारेबाज़ी और आरोपों का शिकार वह इंसान बन जाता है, जिसकी पूरी पहचान सिर्फ़ उसकी “जात” से कर दी जाती है।

यह सोच बेहद खतरनाक है। डॉक्टर इंसान है, मशीन नहीं—उससे गलती हो सकती है, लेकिन उसे जातिगत आधार पर निशाना बनाना न तो न्याय है और न ही इंसानियत। हर जाति का व्यक्ति डॉक्टर बन सकता है और हर जाति का व्यक्ति रोगी हो सकता है। बीमारी इलाज के वक्त जात नहीं पूछती, तो फिर डॉक्टर की नीयत और पेशे को जाति की कसौटी पर क्यों तौला जाए?

समाज को समझना होगा कि डॉक्टर की असली पहचान उसकी योग्यता, ईमानदारी और सेवा भाव है, न कि उसकी जाति। यदि हम सचमुच इंसाफ़ और इंसानियत की बात करते हैं, तो हमें इस संकीर्ण सोच से ऊपर उठना ही होगा।

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