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खागा/फतेहपुर: विपक्ष की सत्ता की भूख और समाज का विभाजन

विपक्ष की सत्ता की भूख और समाज का विभाजन

खागा/फतेहपुर। जाति और धर्म, जो भारत की सांस्कृतिक विविधता के आधार स्तंभ थे, आज की राजनीति में सबसे घातक हथियार बन चुके हैं। सत्ता की लालसा में नीति, विकास और संवैधानिक मूल्यों को छोड़कर अब ध्रुवीकरण, भावनात्मक उन्माद और जातीय-सांप्रदायिक उकसावे के सहारे राजनीति की नींव रखी जा रही है। दुर्भाग्यवश, विपक्षी दल इस दिशा में सबसे आगे दिखाई दे रहे हैं।

जातीय हिंसा की साजिश फैलाती विपक्ष पार्टी

वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में जब भी विपक्षी दल हाशिये पर जाते हैं, तो वे जातीय धार्मिक विद्वेष को हवा देने का प्रयास करते हैं। तो कभी आरक्षण के नाम पर भावनाएं भड़काई जाती हैं, कभी जातीय जनगणना को मुद्दा बनाया जाता है, और कभी चुनावी रैलियों में खुले तौर पर समाज में जहर घोलने का काम करती है। वास्तव में, विपक्ष के एक बड़े वर्ग के लिए सामाजिक सौहार्द्र एक रुकावट बन गया है, क्योंकि शांत समाज में उन्हें राजनीतिक ज़मीन नहीं मिलती। इसलिए वे बार-बार अशांति की जमीन तैयार करते हैं।

सामाजिक समरसता के दुश्मन बनते जा रहे हैं कुछ सत्ता के भूखे लोग

विपक्षी राजनीति का स्वरूप अब केवल सरकार विरोधी नहीं, समाज विरोधी बन गया है। जातीय ठेकेदारी की राजनीति का मकसद है समाज को भीतर से तोड़ना।
कहने को तो ये दल “दलितों, पिछड़ों और वंचितों” की बात करते हैं, लेकिन ना शिक्षा, ना रोजगार, ना स्वास्थ्य – किसी ठोस समाधान पर इनकी कोई रुचि नहीं दिखाई देती। हकीकत यह है कि विपक्षी पार्टी ने ही भ्रष्टाचार को जन्म देने का काम किया है। इनका एकमात्र उद्देश्य है – समाज को लड़ाकर वोट पाना और सत्ता की सीढ़ी चढ़ना।

मीडिया और भीड़तंत्र की भूमिका

आज का मुख्यधारा मीडिया अब जनसरोकारों की पत्रकारिता से हटकर उन्माद की उत्पादकता में लगा है।
प्राइम टाइम में ‘दंगल’, ‘डिबेट’ और ‘धमाका’ जैसे शब्दों के पीछे गंभीर सामाजिक जहर छिपा है, जिसे आम जन तक पहुँचाया जा रहा है। गली-मोहल्लों में बैठे असामाजिक तत्व अब टीवी डिबेट की भाषा में बोलते हैं – जिसका सीधा असर सांप्रदायिक तनावों में देखा जा सकता है।

डिवाइड एंड रूल की वापसी – इस बार देश के भीतर से

“Divide and Rule” की नीति अब केवल इतिहास नहीं, वर्तमान की राजनीतिक रणनीति बन चुकी है। आज के कुछ राजनीतिक दलों ने इसे जनता को स्थायी रूप से विभाजित रखने के शस्त्र के रूप में अपना लिया है। जब समाज एकजुट नहीं रहेगा, तो न सवाल पूछेगा, न जवाब मांगेगा– यही वर्तमान राजनीति का सबसे खतरनाक सिद्धांत बन चुका है। जो आने वाले भविष्य को समाप्त कर रहा है।

अब भी नहीं चेते तो…

समाज ने समय रहते इस विभाजनकारी राजनीति की साजिश को पहचाना नहीं, अगर जनता ने जाति और धर्म के नाम पर वोट माँगने वालों को नकारा नहीं, तो हमें इस लोकतंत्र के रहते हुए भी औपनिवेशिक काल से अधिक अपमानजनक, भयावह और असहाय हालात देखने पड़ सकते हैं। इसलिए अब समय से जागना और समाज को जगाना होगा।

समाधान की राह

1. राजनीति को नीतियों पर आधारित बनाना होगा – शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य और पर्यावरण जैसे ठोस मुद्दों पर।

2. सांप्रदायिक और जातीय उन्माद फैलाने वालों का सामाजिक बहिष्कार करें – वे किसी भी पार्टी या विचारधारा के हों।

3. सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने वाले संगठनों, संवादों और नागरिक अभियानों को समर्थन दें।

4. जनता तटस्थ न रहे – सजग, सचेत और संगठित रहे। लोकतंत्र की रक्षा केवल वोट से नहीं, विवेक से भी होती है।

लोकतंत्र की आत्मा सत्ता में नहीं, समाज में बसती है

समाज ही बंट गया, तो लोकतंत्र केवल एक औपचारिक ढांचा बनकर रह जाएगा।
अब समय है – विचार की लौ जलाने का, सामाजिक समरसता की नींव मजबूत करने का, और इस विभाजनकारी राजनीति को जड़ से उखाड़ फेंकने का।

लेखक परिचय:

प्रवीण पाण्डेय ‘बुंदेलखंडी’, बुंदेलखंड राष्ट्र समिति के संस्थापक एवं केंद्रीय अध्यक्ष हैं। वे बाल्यकाल से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े हुए हैं और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, गंगा समग्र, विद्या भारती एवं पर्यावरण आंदोलनों में सक्रिय भूमिका निभा चुके हैं। वे शिक्षा, समाज, पर्यावरण और राष्ट्रवाद जैसे विषयों पर अपनी दृढ़ वैचारिक लेखनी और जनसरोकार के लिए विशेष रूप से जाने जाते हैं।

Balram Singh
India Now24

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