कल से शुरू हो रही है छठ पूजा, जानें इस चार दिवसीय त्योहार का महत्व और कैसे हुई शुरुआत

कल से शुरू हो रही है छठ पूजा, जानें इस चार दिवसीय त्योहार का महत्व और कैसे हुई शुरुआत
छठ पूजा (जिसे डाला छठ भी कहा जाता है) सूर्य देव और षष्ठी देवी (जिन्हें छठी मैया भी कहा जाता है) को समर्पित एक प्राचीन हिंदू त्योहार है. यह एक वैदिक त्योहार है जो मुख्य रूप से बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश राज्यों के साथ-साथ नेपाल में भी मनाया जाता है, जहां महिलाएं अपने पुत्रों की भलाई और परिवार की समृद्धि के लिए व्रत रखती हैं और जीवन और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करती हैं.
छठ पूजा 2025: तिथि और समय
सूर्य देव की पूजा चार दिनों तक मनाई जाती है. इस साल, यह शनिवार, 25 अक्टूबर, 2025 को शुरू होकर मंगलवार, 28 अक्टूबर, 2025 को समाप्त होगी.
छठ पूजा का पहला दिन: 25 अक्टूबर 2025, शनिवार, नहाय खाय सुबह 6:12 बजे से शाम 5:48 बजे तक है.
छठ पूजा का दूसरा दिन: रविवार, 26 अक्टूबर 2025, खरना, सुबह 6:12 बजे से शाम 5:48 बजे तक है.
छठ पूजा का तीसरा दिन: सोमवार, 27 अक्टूबर 2025, सायंकालीन अर्घ्य सुबह 6:13 बजे से शाम 5:47 बजे तक है.
छठ पूजा का चौथा दिन: मंगलवार, 28 अक्टूबर 2025, उषा अर्घ्य, पारण दिन, सुबह 6:13 बजे से शाम 5:46 बजे तक है.
इस त्यौहार के बारे में रामायण और महाभारत दोनों में विस्तार रूप से उल्लेख किया गया है. जहां रामायण में, सीता द्वारा सूर्य षष्ठी या छठ पूजा, रामराज्य की स्थापना के दिन किए जाने का उल्लेख है. वहीं, महाभारत में, कुंती (पांडवों की माता) ने लाक्षागृह से भागने के बाद गंगा तट पर यह पूजा की थी.
दृक पंचांग के अनुसार, छठ के पहले दिन को नहाय खाय के रूप में जाना जाता है, और इसे किसी जलाशय, विशेष रूप से गंगा में पवित्र स्नान करके मनाया जाता है. छठ व्रत करने वाली महिलाएँ इस दिन केवल एक बार भोजन करती हैं.
छठ के दूसरे दिन खरना पूजा को समर्पित होता है.इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जला व्रत करते हैं. शाम के समय गुड़ और चावल की खीर, रोटी और फलाहार का प्रसाद खाते हैं. इसके बाद 36 घंटे के कठोर व्रत की शुरुआत होती है, जिसमें पानी पीने तक की मनाही होती है.
तीसरे दिन को संध्या अर्घ्य कहा जाता है. इस दिन, भक्त जल में खड़े होकर डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं. सूर्य देव को दूध और जल अर्पित किया जाता है और छठी मैया की पूजा की जाती है.
चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देकर मनाया जाता है. छठ महापर्व के अंतिम और चौथे दिन, उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. सुख-समृद्धि की कामना की जाती है. फिर प्रसाद चढ़ाया जाता है. अंतिम दिन, उषा अर्घ्य, नई शुरुआत और आशा का प्रतीक है. भक्त सुबह-सुबह घाटों पर लौटकर उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं, जो उपवास के अंत का संकेत है, और प्रसाद ग्रहण करके व्रत तोड़ा जाता है, जिसके साथ चार दिनों का यह व्रत संपन्न होता है.
ऐसी मन्यता है कि भगवान सूर्य को अर्घ्य देने से रोग-कष्ट मिट जाते हैं और भगवान सूर्य की कृपा प्राप्त होती है. मान्यता है कि जिनको संतान नहीं है, उन्हें संतान सुख प्राप्त होता है.



