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संडे स्पेशल कहानी : कानी दाई माँ

संडे स्पेशल कहानी

10 नवंबर 2024

संकलनकर्ता : ठाकुर पवन सिंह

कानी दाई माँ

मिस्टर मेहरा बहुत बड़े बिज़नेसमैन थे। उनका हर मिनट कीमती था और इस वक़्त वो खुद को बहुत चिड़चिड़ा और परेशान महसूस कर रहे थे। वो किसी भी हाल में पेरिस से भारत नहीं आना चाहते थे ? एक तो उनकी बिज़नेस मीटिंग्स का शेड्यूल बहुत टाइट था , दूसरा उन्हें भारत जाने का कोई ठोस कारण भी नज़र नहीं आ रहा था ?

केवल इतनी सी बात थी कि दाई माँ की तबीयत खराब हो गई थी , लेकिन उनका मानना था कि भारत जाने के लिए यह इतना बड़ा कारण नहीं था , क्योंकि उनका मानना था कि इलाज के लिये भारत में ही कई डॉक्टर मौजूद हैं। पंद्रह सालों में दाई माँ ने उन्हें पच्चीस बार बुलाया , लेकिन हर बार व्यस्तता का बहाना बनाकर वे नहीं आये ?

मिस्टर मेहरा को अपना बचपन याद आया। वो करीब छह या सात साल के थे , जब एक कार एक्सीडेंट में उनके माता-पिता की मौत हो गई थी। दाई माँ जो जन्म से ही उनकी देखभाल कर रही थीं , उस कार में उनके साथ थीं और हादसे में उनकी एक आँख चली गई थी। इस हादसे के बाद दाई माँ ने उन्हें अकेले पाला लेकिन एक आंख वाली दाई माँ से मिस्टर मेहरा को हमेशा डर लगता था। एक बार स्कूल में दाई माँ उन्हें लेने आईं तो बच्चों ने उनका मजाक उड़ाया और तब से मिस्टर मेहरा ने उन्हें सामने न आने का आदेश दे दिया ?

इसके बाद दाई माँ हमेशा दूर से ही उनकी देखभाल करती रहीं। टिफिन बनाना , स्कूल ड्रेस तैयार करना , खाना बनाना आदि। वे हर काम बिना सामने आये ही करती रहीं। मिस्टर मेहरा उन्हें ‘ कानी दाई माँ ‘ कहते थे और गलती से कभी उनका चेहरा देख लेते तो कई रातें डर के मारे सो नहीं पाते ?

पिता के बैंक में छोड़े हुये पैसों से मिस्टर मेहरा बीस साल की उम्र में ही विदेश चले गये और वहां सफल बिज़नेसमैन बन गये। इन पंद्रह सालों में उन्होंने पच्चीस बार कानी दाई माँ के बुलावे को नजरअंदाज किया। मगर इस बार उनके फैमिली डॉक्टर का फ़ोन आया कि मामला अर्जेंट है और उनका इंडिया आना जरूरी है ?

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मिस्टर मेहरा जैसे – तैसे मीटिंग्स एडजस्ट कर भारत पहुँचे। उन्हें पता चला कि उनकी कानी दाई माँ अब नहीं रहीं। श्मशान घाट पर अंतिम संस्कार के बाद वो जल्दी से फैमिली डॉक्टर के पास गये और झल्लाते हुये बोले , “ये सब करने के लिये मुझे क्यों बुलाया ? मुझे कितना नुकसान हुआ होगा वहाँ , कुछ अंदाजा भी है आपको ?”

डॉक्टर ने हल्की मुस्कान के साथ कहा , “मिस्टर मेहरा , अब आपको ज़िंदगी भर डर लगेगा। आपको अपनी कानी दाई माँ से नहीं , अपने आप से डर लगेगा।” मिस्टर मेहरा गुस्से में थे, उन्होंने फौरन पूछा , “ये क्या कह रहे हैं आप?” डॉक्टर ने फौरन एक फाइल निकाली और कहा, “कानी दाई माँ ने इसे आपको दिखाने से मना किया था , लेकिन अब वो नहीं रहीं। अब आप यह फाइल देख सकते हैं ?”

फाइल में एक कार एक्सीडेंट की रिपोर्ट थी। उस एक्सीडेंट में एक पति-पत्नी की मौत हुई थी और उनके छह साल के बेटे की एक आँख चली गई थी। उस बच्चे को आँख देने वाली कोई और नहीं , बल्कि उसकी दाई माँ थीं , जिन्होंने जीवित रूप में ही उस बच्चे को अपनी एक आँख दे दी थी ?

रिपोर्ट पढ़ते – पढ़ते मिस्टर मेहरा के हाथ-पैर कांपने लगे। उनका दिमाग सुन्न हो गया। उन्होंने अपनी आँखें बंद कीं , लेकिन आँसुओं ने उनकी पलकों को भिगो दिया। वो बिना कुछ कहे श्मशान घाट की ओर दौड़ पड़े। वे वहाँ राख में अपनी कानी दाई माँ को ढूंढते हुये उनसे लिपटकर फूट – फूटकर रोते रहे। वो सोचते रहे कि उनकी दाई माँ कानी थीं , लेकिन असल में अंधे तो वो खुद थे , जो इतने सालों तक उनकी एक आँख को न देख सके ?

संकलनकर्ता : ठाकुर पवन सिंह

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Himanshu Chaubey

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